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शृंगारमंजरी
वृक्ष सिउ लइ आलिंगन वेलडी, फल-पयोधरि नमी साहेलडी, . कामिनी नव-नेह गहेलडी, प्रीउं कठि वलगइ वहेलडी. ५१४ प्रिय बिरहिय हीय-सारणि, तिणि कारणि हर देवि, मदन-बाण एणइ हेतुकि, केतकी शापी हेवि, विरहिणी-जन मन-दारिण, दारुण करवत-धार, वनि वनि केतकि महिमही, गहिगही भमर जंकारि, ५१५ भमरला गणि वींटी केवडी, गुणे करी पण दीसइ केवडी, बन मांहि देखी इम केवडी, विरहिणी मूरछाइ केवडी. ५१६ स्त्री-कुचसि बल मांडि म, दाडिम ताडि म आणि, दिन थोडा रे बसंतना, सतना गुण तूं आणि, तुज मनि भूसा जेहनी, ते एहना अधर विचालि, इम बूजविवा सूडिला, रुडला बईठा डालि. ५१७ दाडिमी कुच उपमा कामिवा, तप तपइ ए शोभा पामिवा, वन मांहि अधो-मुखि जे रहइ, टाठि-ताप तिणि वेधई तनि सहइ. ५१८ नव नव किशलयि रातीय, मातीय कुसुम-अंबारि, सहिजि सुरंगीय वेलडी, बेलडी अंब-आधारि, किहिं चंदनि अहिनव-कुल, वकुल-लता किंहिं जाल, जोतां चीत कि हीसइ, किहि सहिकार रसाल. ५१९ वसंत-मासि पंथी-जन-कामिनी, वाट जूइ उभी गज-गामिनी, यौवन चंचल जाइ जिम दामिनी, वरसनी परि वइरणि यामिनी. ५२० वनि आंबा रस-मंजरि, पिंजर छांटणां कीध, कुसुम चित्ताम कोकिला-रवि, धवल-मंगल तिहां दीध, पहिरी कुसंभ सपल्लव, पल्लव रूपि सुरंग, मदन आवंति वनि तां, वनिता इम धरइ रंग. ५२१ मानिनी-जण आण मनावी, कोइलि कलह भंजिउ आवी, कामराय तुठिउ तिणि काजइ, कोइलि नइ आपिउं वनराजि. ५२२ अगुर-पयोधर सफलीय, नव-वहूनी परि वेलि; बोलइ नव भयि कांपति, रहि रहि प्रीउ मुख मेहेलि, नन नन अलि रवि वारती, आवी मलय समीर, दिइ आलिंगन वेलिसिउं, हेवि सिउं आणी धीर. ५२३ भमरलइ कोइ चांपी काची कली, वेलडी तिणि कॉपि आकलो. तेणि पल्णव शोणित नीसरइ, पंथीयां नव-वहू तव सांभरइ. ५२४
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