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जयवंतसूरिकृत
महीअलि नाम रहावी, जलधर जीतु दानि, ते नर गया न शोचीइ, त्रिभुवन-तिलक समान. ५०३ सज्जन सहु टोलइ मिली, प्रोछविउ अजितकुमार, शोक संताप निराकरी, तस सूपिउ गृह-भार. ५०४ वाहलां विछोहियां मांगसह, पहिलू डंबर खाइ, आज तेहबू कालि नहीं, दिनि दुख उलाइ. ५०५ शरदिई सरोवर नीर जिम, खिणि खिणि छंडइ पालि, तिम तनि तनि दुख उसरइ, जेहवू हुइ ततकाल. ५०६ अजितसेन गृहपति हवु, शीलवती धरिनारि, कुटंबभार दोइ निर्वहइ, निज कुल तणा आधार. ५०७ इम करतां दिन केतला, गमीआ लील विलासि, अजितसेन सुख जोइवा, पुहुता श्री मधुमासि. ५०८
ढाल १६
राग काफी
[ देशो फागनी] कमल-सिंहासन निरमल, अमल-ससी सिरि-छत्र, चंचलगति मलयानल, मयगल अतिहि विचित्र, कोकिल-कलरव बंदीय, नंदीय अलि-परिवारि, मयण-राय रहिउ कानिनि, मानिनि-मद संहार. ५०९
काव्यं कामिनी-जन सेवा गहिंगही, कुसुम-बाण अति दारुण करि ग्रही, आगलीथी आव्या वसंत-प्रधान, पूठि थकी राज पंच-बाण. ५१० चंपक-तनु कर किशलय, बिशलय-दल भुज नेत्र, अलि कुल कजल अंजन, जनमन-रंजन चित्त. गोरी जंबीर पयोधर, अघर प्रवाली-सार, वसंतरूप ए कामिनी, कामिनी तिलक-शृंगार. ५११ प्रीउडउ उत्तर कामिनी सिउं रातु, नवि रहइ रवि वारिउ जातु, दखिणी इम नीसासु मेहलइ, वायुलु उन्हउ तिणि खेल्लइ. ५१२ सरल सहकार सपिंजर, मंजरि करीअ आहार, कोइाले सरलइ सादि, वादइ अति मनोहर, . विरहिणी-जन मन-साल ए, साल तणी परि तेह, प्राण त्यजइ के पहिलां, गहिलां जे ससनेह. ५१३
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