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शृंगार मंजुरी
उनि तेइ सानि सुवेखी, चतुर कामिनिनी परि देखी, सुकर पल्लवि वेली नाचती, भमरनई तेडई मदि-माअती सही ए निसिदिन सेवइ, सज्जन सुगुण सुरंग, घडीअ न पासुं छांडीइ, मांडीइ नव नव रंग, अल-अल इम मनि जाणीय, बइठा डालडी मूलि, पाडल किशलय कोमल, परिमल पेशल - फूलि.
चंदन-गंध भुजंग मिलीघउ, वायुलइ मलय संगम कीघउ, संगति विख धारि घूमइ, तिणि वायु पंथी-मन दूमइ.
सरल सछाय अशोक ए, लोक निं मोहन रूप, जाणे स्त्री कर - पल्लव, पल्लव रातइ रुपि, पंथीय कामिनि विरहय, रहिय वीसामु लेइ, आशा-बंध अशोक ए, सोक संताप
हरेइ.
वंश वजावइ भमरला, सुणतां दिइ उल्लास, तांडव मांडी नाचए, राचए मोर विलास, गीत गाइ तिहां कोइलि, आलवी पंचम - राग, इणि परि रितुपति आगलि, नाटक हुइ सराग. अशोक देखि कोइल उचाटिउ, कामिनी-मुख तंबोलि छाटिउ, प्रिय तणीं परि संभारण काजि, धरइ पल्लव राता आजइ.
चालवती कर-किशलय, वेलडी नाच करंति, रंग- मंडप मलयानिल, सोय कला - गुरु हुंति, नील-दल केरी कांचली, पहिरी नव नव भाति, भमर जोइ ते नाटक, मनोहर मांडी पांति,
कामिनी-स्तन आलिंगन पामी, कुरुबकइ पणि फूलिउ कामी, हरिणाक्षी भीडइ स्तन विचालि, माणस पंहि ते रूप रसाल. वसंत - मासि मुझ विरहिय, रहीय न सकइ नारि, प्राण त्यजइ प्रेम - गहिलीय, वहिलीय वसंत मजारि, काम वसंत वय-स्नेहनि, दुखण चिंतइ कोइ कोइ, कोइलि संशय टालिवा, तुहि तुहि बोलइ सोइ, कामिनी जे साहामूं जोइ, तिलकनी प्रेमनइ रसि साथ बोलइ, इंद्र नई ते गणिइ तृण तोलइ.
परि कुलइ सोइ,
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कामिनीचरण प्रेम-प्रहारि, तरु हसिउ ए फुल - अंबारि, Saint पर अशोक सुसंपनु, भमरला मिसि रोमंच उपनउ. ५४०
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