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________________ जयवंतसूरिस्कृत एणइ जो वनि बहु भोलव्या, भमरला परिमेल-वेधि, रंग देखाडी बाहिरि, भूला भमइ बहु-वेधि, तिणि पापि अंत्यज मुखि, सीबलि नउ हुउ वास, इम जे आस्यां भांजस्यइ, ते फल लहिसइ तास. ५४७ भमरलु कोइ फुलि नवि रमइ, सहीय वेधि विलूघउ वन भमइ, वली वली मालती गुण संभारइ, चिंतथी घडीइ न वीसारइ. ५४८ करणी केतकि किंश्रुक, कमल कंदबक कल्हार, कणयर कदम मनोहर, पाडल पोयणि सार, महिमहितु वली मोगरु, मरुउ महिमि अपार, मानवनां मन मोहन, मुचकुंदनइ मंदार. ५४९ सुगुण माणस सोहइ वांकडु, रूपवंति नइ छाजइ आंकडु, . तेह भणी करणी नइ केवडी, धरइ कंटक रूप गुणे वडी. ५५० जूही जाल जासूअण, जांबु नई जंबीर, वुलसिरी बालु वेउलि, वनि वनि वावि सनीर, सरल सकोमल सुंदर, शीतल सोहइ समीर, कुहु कुहु करती कोइलि, कलहंस निइ किहि कीर ५५१ ऋतु-वसंत एणी परि आवीउ, भोगीआं-जन मनि अति भावीउ, कामिनी सवि शृंगार सोहावी, सखी साथि खेलइ वनि आवी. ५५२ विसहर जाणे जेणीई, वेणीइं बंधन कीध, जग-बल्लभ अरि-भूषण, दुषण एहवू कीध, कुंतल-छलि अथ चामर, मनोहर-मयण तणाई. सिरि पंकज रस-लोभीय, जाणे भमर भरांइ. ५५३ सींदूरि सिरि-मांग सों जालिउ, मदनराई जाणे डंड आलिउ, कामिनी जेहसिउं बल मांडइ, तेहनई आणी पाए पाडई. ५५४ भमहि-कोदंड चडावीय, सांधीअ लोचन-तीर, जे बल नयन सिंउ मांडतां, ते ते जीता वीर, हरिण हवां वनवासीय, कमल रहियां जल मांहि, चिर न रहइ वली खंजन, चकोर सहइ दिनि दाह. मानिनी हर-सिंउ बल मांडइ, मित्रना अरि-सिउं रहइ ताडइ, इश्वरि मदन लोचनि बालिउ, कामनीइं निज लोचनि वालिउं ५५६ युवती-जन-मुख उपमि, कीधु चंद अजाणि, जेणिं काय पंकज उपमि, ते पणि अतिहिं अजाण, युव-जन लोचन-पंकज, किम विहसइ ससि देखि, - कमलिं कमल न उपजइ, मनसिउं विचारी पेखि. ५५७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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