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भंगारमंजरी
वाहाणी वली उतारीअ रिजुमति, रज
निवारीअ. सारीअ पहिरी चलने चमकती ए, धनपती चिंतइ वामाए, धीई करी ए वामा ए, रामा ए पणि नहीं रामा रमकती ए. १६९ भव्य-जंतु जिम भव तरिया, तटिनी-तट तिम उतर्या, जोतर्या धाइ धोरी धुलीआ ए, जगदीस्वर- ध्यान धरतां, नवपद महिमा मनि स्मरता, इम करतां मारग केतु वुलीआ ए. १७० सुभट एक मारगि मिलीअ, दढ-प्रहार अंगइ वलीअ, ते वलीअसेठिइंसुभट प्रशंसीउए, वहू कहइ सुणु रयणायर, किसिउं वखाणउ सायर, कायर किहि एकथी नहासीउ ए. १७१ धाय सबल दीसइ एह तनि, रणणायर चिंतइ निय-मनि, नवि मानइ साचु ए सही, पुंश्वली ए चित्ति परिताप अति करीअ. सेठि रह्या मनमां धरीअ, अणसरीअमौनपणउं मारगि वलिअ. १७२ आगलि चाल्या आउल, दीठउ तव एक देउल, वेउल वुलसिरी परिमल भर्य ए, शेठि वखाणइ सुंदर, जांणे जंगम मंदिर, मंदिर स्वर्ग जिस्युं ए अवतर्यु ए. १७३ वहू कहइ ओ मंदिर, तुह्म मनि छइ अति बंधूर, कंदर सरखं पणि मुज मनि हवइए, मुरखि माहइ पहिलीअ, सेठि कहइ छंदु वहिलीअ, गहलिअ उनमत नीपरि ए लवइ ए. १७४ देउलथी चाल्यां जिसई, आगलि आव्युं पुर तिसई, हरिसई सेठई नयर वखाणीउं ए, इंद्र-भवन जिस्युं अवतर्यु, स्वर्ग थके जाणे उतर्यु, चीतयुनिय-मनि मनोहर जाणीउं ए. १७५ नयर वखाणइ सानन, नवि जोइई एहy आनन, कानन समवडि ए पुर, मुज मनइ ए तिहाथी चाल्या ते पुर, वेगई छंडी ते पुर, नेपुर विधवा वनिता जिम तजइं ए. १७६ जव मेहल्यु ते देसडु, तव दीठउ एक नेसडु, वेसडु लोक तणु जिहां अभिनवु ए, देखी थोडु जन-वहन, सेठि कहइ ए वन गहन, निवहन उत्तम कै९ हीं नवु ए. १७७ वहू कहइ सुणु रयणायर, ए उत्तम रयणायर, सायर नयर ते मनोहर रूप ए, धनपति चिंतइ ए समी, वांकी कोइ नजिम समी, मनसमी जिम धण हीनइ विस हरू ए. १७८ विपरित शिख्यित जिम तुरंगी, कुटिल जिसी हुइ वली उरंगी, जु रंगी बोल न मानइ अझ तणु ए, जे बोलइ ते सवि कूट, जेहवां मोटां नग-फूट, अखुट वचन कोश ते एह तणुइए. १७९ सा कहि ए वेलाउल, एहवि आव्यु माउल, वाउल शीलवतीनुं तिहां रहइ ए, ससरा स(र)सी - सुंदरी; नहुंतरी आव्यु मंदिरि, निज घरी भोजन सामग्री करोइ ए. १८०
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