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________________ १६ जयवंत सूरिकृ सादर, ऊपरि भोजन दे सुंदर चूआ-चंदन छांटणां ए, उत्तम संतोखी वउलावीय चलावीय मातुल दुःख गयां सवि वीसरी, साधन अणुसरी वाट वटतर छांहडी ए, उतर्या आलस मोडींअ, Jain Education International आपी चादर, वलवीय, वस्त्र १८१ निज मंदिर वल्युं ए. आत (ता) पि नीसरी, वड हेठलि रथ छोडीय, नारीअ लटकइ लोडावइ बांहडी ए १८२ ढाल ९ राग : रामगिरी ( ऋषिदत्ताना रासनी, ऋषिदत्ता पंथि संचरई, ए देशी ) १८५ की. सेठि बइठा वड हेठलई, रथ छांहींडइ रे नारि, नियमनि चिंता चींतवइ ए, है है अधिर संसार. १८३ कीधां करम न छूटीइ, जूउ हृदयि विचारि, दिन सघला नहीं सांरेखा, चिंता चित्ति निवारि. १८४ दूपद तथा आंचली. करमिं मुंजी मोटउ नम्यु, वली रावण भूप, पांडव नरपतिं वनि भम्या, जोउ करम सरूप. बार वरस राम वनि रल्या, भाइ लक्ष्मण साथि, सुख-दुःख केरी बांधणी, सहू करमनइ हाथि. १८६ की. नल नरपति पर मंदिरई, करइ अन्ननउ पाक, नियतन सुरित छांडीउ, जोउ करम - विपाक. १८७ की. सती सुभद्रा मूलगी, करमई चडचु रे कलंक, दमयंती करमई नडी, शीलवती नई कलंक, १८८ की. हरिचंद पर धरि जल वहइ, सीता सहइ अपवाद, करम साथइ कुणइ नवि चलईं, कीजइ किस्यु रे संवाद. १८९ की. रूषिदत्तानई वली चडयुं, राक्षसी केरूं आल, कर छेद्या कलावती, जोउ महाबल मयलासुंदरी, सह्या ढंढणरिखि मास छ लगि, महाई दुःख सह्यां, वन महईं सुत जनमीड, अक सुखना अकं दुःखना, जिम तरुअरनी छांहडी, किहां ते मंदिर मालिआं, वाघ सिंघ भीषण वली, करम- जंजाल. १९०० की ० दुःख अपार, १९१ की. देश, वेश. १९२ की. नव पाम्या आहार. परिहर्यु पतिनुं जोउ करमनुं दिन सरिसा न होइ, खिणि नमती रे जोइ. १९३ की. सप्तभूमि - आवास, किहा • वनि - वास. १९४ की. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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