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________________ शृंगारमंजरो किहां पल्यंक तलाइ स्यूं, किहां हीडोला खाट, किहां रहिवं रज-पूंजमां, वली अवघट-वाट १९५ की. उदय आव्युं कर्म महारइ, जउ चडयुं रे कलंक, भोगव्या विण छूटइ नहीं, मोटा राय नइ रंक. १९६ की. दहा इम करि नीअ-मन चालती, शीलवती गुण-गेल, अहवइ पासि करीरथी, वायस बोल्यु बोल. १९७ धन-आगम अनरथ समु, जाणी ह्रदय मजारि, वायसनि वनिता भणइ, भाइ तुं अवघारि. १९८ तोः वचन सोहामणुं, खोटउं ते नवि होय, कलियुगि तुं ज्ञानी समु, तूं सरिखु नहीं कोइ. १९९ आगम निर्गम सवि लहइ, तुं तां चतुर सुजाण, सुख-दुःखनी वात तुं कहइ, तोरी वाणि सुवाणि. २०० तुज अरथी अहीं को नहीं, भाइ म करि आयास, गुण अवगुण थइ परणमइ, तिहां स्यूं करइ प्रयास. २०१ गुणवंत विण कुण लहइ, कुण दिइ गुणनइ मान, सार विण सूकइ वेलडी, उगी सूनइ रानि २०२ सोना केरी भालडी, पाणी मांहि म नांखि. कुगुण कवेधां आगलइं, ल निज गुण मन दाखि २०३ गुण-मणि मन भंडारमां, मूल न कीधुं जाइ, मुरख करि सोइ अप्पीउं, कुडी मूल न थाइ. २०४ सुगुणां गुण अरथी विना, दिन झरता जाइ, नागरवेलि फल बिना, जिम झूरइ वली जाइ २०५ पासई कुगुण कुवेध नइं, सुगुणां हइई साल, झूरी झूरी पंजर हवइ, अवटातां जाइ काल २०६ गुणवंत वरी अकइ भलु, नहीं नर-गुण दसलाख, कारेली बहु कां फली, वरि ओक रूडी-द्राख २०७ सुगुण सुवधां नितु मरण, जे जाणइ गुण-दोष, मन मांहई झुरी मरइ, निसिदिन हैडइ सोस. २०८ सुगुणां विण गुणवंतनी, कहु किम भागइ भुख, सरखई सर जे मिलइ, ते जाणइ मन-दुःख. २०९ सज्जन को तेहवू नहीं, जेहनई कहुं मन-दुःख, कंठि आवइ हैआ थकी, आधु न लहइ मुक्खे. २१० बोली बोली थाकु घणूं, उडिन पंखि-सुजाण, जाइ-न तुं तिणि देसडइ, जिहां को हुइ गुण-जाण. २११ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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