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________________ जयवंतसूरिकृत आवटणु निसि-दीह, वेघ विलग्गु पापीउ, न दहइ पूरी देह, अवटातु न रहइ घणुं. १४०८ तनु अवटावइ मन दहइ, दुल्लह जण अणुराय, तुहइ आशा पापिणी, फिर फिर करइ विखास. १४०९ हैडू कठिन न कोमलं, वाहाला विरहिं माइ, आस न मेहलइ जीवतां, अहव न विलइ जाइ. १४१० नींसासु उजागरु, ए अंकूरी जास, प्रेम-लतानां सियां हसइ, परिणामि फल तास. १४११ हैडा तूं जेहनि मरिं, पीडि न जाणइ सोइ, साली न पडइ एक हथि, लोक ऊखाणउ जोइ. १४१२ एकजि तत्त अत्तत्त सिउं, लोह न सांघिउं जाइ, सरखइ सरखु जो मिलइ, संघइ संघि मिलाइ. १४१३ दुल्लह सिउं अणुराय करि, हैया विसूरइ काइ, दोस संभारि न अप्पणा, को जीवइ विस खाइ. १४१४ दाडीम-फल जिम प्रेम-रस, एक पक्षि सकसाय (१) बीय न रचइ जां लगइ, तां किम महुरुं थाइ. १४१५ दुल्लह माणसि रजतां, नितु नितु मरणां होइ, आस न मेहलइ जीवडु, सज्जन न मिलइ सोइ. १४१६ पापी वेघ न रूयडु, दुख दीइ निरवाणि, वेघ विलूघां माणसां, जण हासू सय-हाणि. १४१७ कुहनि वेघ म लागसिउ, दोहिलं वेघ-बंधाण, नेटि मिलइ मन भावतां, तु ते वेध-प्रमाण. १४१८ रत्तां सरिसू रचीइ, एहजि सार सनेह, निस-नेहई मन आवटइ, लोक हसारथ तेह. १४१९ ऊंचा आंबा रिं फल, कांटे कीधी वाडि, जे फल किमहि न पामीइ, तिहां मन करइ रूहाडि. १४२० है हैडु बालकनी परि, जं जं नाम सुणेइ, तं तं मोगइ आडि करि, नहींतरि जूरि मरेइ. १४२१ कां ते सज्जन सांभलियां, कां आव्या इण मागि, मन लग्गू नवि ऊखडइ, जिम पटुलई चित्राम. १४२२ रे हैडा संतोष करि, ए तूं मागू मांन, कुण लहिसइ ए दुखडा, जे तूं रोइ रानि. १४२३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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