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शृंगारमंजरी
चमर हारि छइ रायनि वेश्या, कामपताका नामि सुवेशा. १३८९ सु. द्रव्य वडइ ते निज वसि कधी, सारथवाहिं बेसि प्रसीधि. १३९० सु. सारथपति कोइ अक्सर जाणी, वेशानइ कहइ वात विनाणी. १३९१ सु. राजकाजि ए राय तुह्मारु, सालम दीसइ कांइ असारु. १३९२ सु. राज-सभाई आवइ मुडु, वहिल जाइ ए सिउ गुडु, १३९३ सु. कितवादिक अहनि व्यसन न दीसइ, जेहन बाधु भीतरि बइसइ. १३९४ सु गुणवंत गणिका तव इम भासइ, सम्यग वात न जाणउं तास. १३९५ सु.
दुहा गणिका कहइ सुणु सार्थपति, सम्यग न लहूं वात, पणि अतःपुरि एहवी, वार्ता छइ विख्यात. १३९६ जन्म लगइ भूमि-गृहई, राखी को एक बालि, राजा तेह सिउं एक मन, विलसइ भोग-रसाल. १३९७ अनंगदेव ते सांभली, चिंतइ चित्त मझारि, . सती बिरुद रवि देखता, घरइ ते केहवी नारी. १३९८ तेहसिउं गुण रस-गोठडी, करि सिउं केणि उपाय, जेहसिउं नयन मेलावडइ, विहि अंतराइ थाइ. १३९९ नाम सुणिउं जव तेहवु, तव लगइ लागु नेह, आंखडीयां अलजइ धरइ, मिलवो कारणि देह. १४०० जिम तरसिया सरोवर लहिउ, मनि आणंद स थाइ, गोरी नाम सुणिउं तिसिउं, हैडइ हरख न माइ. १४०१ दूरई तेहसिउं गोठडी, चित्ति चित्त मिलाइ, नयणा देखु जउ किमई, तुहइ संतोष थाइ. १४०२ मान घरइ एक नेह बसि, दुर्लभ दर्शन जेह, वारीतां जे भेटीइ, अधिक वधारइ नेह, १४०३ भूख तरस निद्रा गइ, तालोवेलि प्रताप, माणस वेध विलूघडां, पगि पगि हुइ संताप. १४०४ छांनी लांघण नितु करइ, वेघ विलूघा जेह, पाकां पीपल-पन्न जिम, पंडुर हुइ स देह. १४०५ वेघ-घण काया-आंबलइ, पइठउ अतिहि दहति, फोली खाइ भीतरइ, सूकां साल रहंति. १४०६ जेहसिउं लागु वेघडु, जा लगइ ते न मिलंती, तां दव लागु वेडि जिम, भोंतरि जीव वलंति. १४०५
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