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________________ १०४ जयवंतसूरकृत जे माणस हुइ एक-मना, जउ दीजइ तस हाथि, वरी सहोइ जण-बोलडा, मरीइ तेहनइ साथि. १३४१ जे नारो बि-मनी हुइ, बहुया हुइ जस मित्र, काना पाकइ कुंभि जिम, न मिलइ कुहुनूं चित्त. १३४२ एक-मनां जे वल्लहां, मिलइ तु बइठां रजु, मायावी जग-वल्लहां, तिणि सज्जनि नहों कजु. १३४३ चंचल लोभी माणसां, गुण अवगुण न लहंति, गुणिका नइ सज्जन तणां, अंतर कुण कहंति. १६४४ जउ दीजीसइ दम्मडां, तु लख मिलसइ नारि, पणि सज्जन गुणवंतनु, अंतर किसिउ विचारि. १३४५ अंगो अंगइ नवि मिलइ, नयणां तणइ सनेहि, प्रीति साची पदमिनी, दूरि न दाखइ छेह. १३४६ जउ मंडीजइ प्रीतडी, गुणी लीजइ कमलाह, सुख-दुख संघातई सहइ, पणि न मिलइ अवरोह. १३४७ मिलइ तु आंबा सिर मिलइ, कोइलडी सविवेक, ते विण वरि भूखी रहइ, बोल न बोलइ एक. १३४८ सत्तवंति भूखी रहइ, कोइलि अंब-विहीण, लाज न राखइ नयननी, माणसडां सत-हीण. १३४९ बप्पीहा तरसिया मरइ, जंखर हुइ सरीर, मिलइ तु जलधर सिउं मिलइ, अवर न वंछड नीर. १३५० पंखींडां प्रीति पालवइ, पणि माणसडां न होइ, मेह विना बप्पीहडा, मरइ न पीइ तोइ. १३५१ सजन एक जि कीजीइ, घणां करिं सिउँ काम, अविहड एक मन सुकुलनां, सुख-दुखनु विश्राम. १३५२ सुखि सुखीयां दुखि दुखीया, मननि ठारणहार, एकइ माणस जस नहीं, ते किम करइ संसारि. अविहड जाणी कोजीइ, सुगणां सज्जन साथ, साही कुमाणसि रचतां, चठीइ जण जण हाथ. १३५४ हैडा केरू होर, भार न वहितां भज्जजीइ, मिलइ जउ गुण गंभीर, कही वीसामु लीजीइ. १३५५ जेहसिउं छाजइ मान, लजावियां लाजइ वली, कीजइ सुजन सुजाण, रीस खमइ जे आपणों. १३५६ तेह भणी गुणवंत स्युं, कीजइ प्रीति सुरंग, एक-मनां पालीजीइ, किमहि न हुइ विरंग. १३५७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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