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शंगारमंजरी
जात मात्र कोइ नृप-सुता, सुंदरि रूप रसाल, भूमिहरमां वध्धारि करि, विलसू उत्तम बाल. १३५८ लागइ दोख कुसंगति, माणसनि प्रवाहि, प्रांणी प्राणो नीच गति, कुल वडूं खणइ प्रवाहिं. १३५९ एकजि तूंबी रुधि रलइ, एक तारइ जल ठोणि, अक - वीणई महुरू लवइ, संगति तणइ विरामि. कुसुमि मिलियां सुर सिरि चडइ, पाय तलि चम्म मिलंति, संगति तणउ पटतरु, दोरा प्रगट लहंति. १३६१ धतुरइ ते जल पडिउं, हलाहल विख थाइ, इक्षु-वाडइं टीप जे, अमी स५ तोलाइ. १३६२ हंसा छीलरि बइसतां, मनि हुइ बग-शंक, ऊछां साथइ बोलतां, जण जण दीइ कलंक. १३६३ सहो कुमाणसि रच्चतां, त्रणे दाध दहंति, जण हासू मनि उरतु, निरवाहू आन हुंति. १३६४ इणि कारणि नवि कीजीइ, ऊछां साथि सनेह, लंछण लाइ दूरि रहइ, नितु अवटावइ देह. १३६५ सज्जन संगति मुज गमइ, जस मुहि अमोय वसंति, जगि शोभा गुण संपजइ, कसीआं विरस न हुंति. १३६६ त्यजीइ संगति नीचनी, यद्यपि नुहि विकार, दोखी दुर्जन पापीओ, पाडइ तुहि विचार. १३६७
ढाल २७
राग गुडी
(संभारी संदेश, ए देशी) वनिता वसि करवा नइ, कारणि भूपति चिंतइ चित्ति दे, भूमिहर महई राखतां, किम हुस्यइ कुसंगति दे. १३६८ इम चिंतइ भूपालजी, जउ वसि राखू नारि दे, तु साची मति माहारी, नहीतरी सरव असार दे. दुपद जात मात्र को एक नृप-दुहिता, लक्षण रूप रसालि दे, परणी उलटि अति घणइ, सरल रूप रसाली दे. १३६९ इ. निज धवल-गृह हेठलिं करी, एक गृह पाताल दे, गुपित एकांति भूमिहरि, राखी तेहजि बाल दे. १३७० इ.
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