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जयवंतसूरिकृत
सोनइ सामि न हुंइ किमि, मरुथलिं न हूइ पंक, उत्तम न करइ पाडु उं, न धरइ हंस कलंक. ७१७ दोषी दुर्मुख सिंउ करइ, जउ मनि खरू सनेह, वाई वहिडइ केतलू , सजल आसाढा-मेह. ७१८ अधिक वघारइ प्रेम-रस, दोखी दुरियन वाणिं, सोनूं करतां पाहाण-सिउं, अधिक वाघइ वान. ७१९ दुरियन वचन हैइ धरी, प्रीति विशेख त्यजंति, प्रेम किसिउ ते कारिमु, जे विंचि रेह पडंति. ७२० दोखी दुरियन केरडा, लाख सुणउं जो बोल, तहइ तुछ उपरि थकी, मन नुहइ डमडोल. ७२१ शीलवती वलतूं भणइ, तुहइ सुणि सुविचार, पापी चंचल चितडूं, सुपरिस करइ विचार. ७२२ अणचींतिउ मन चीतबइ, वंछइ दुर्लभ जेह, अणधटह विकलप करइ, असरिस मंडइ नेह. ७२३ जे नवि सुहुणइ दीसीइ, जे नवि नयणां बारिं, है है चंचल चित्त ते, वंछइ हैआ-मंजारि. ७२४ कुहनइ कहिसिउं मन मिलइ, तेहनि कहिसिउं भाव, कुंण जाणइ ज्ञानी विना, निज निज चिंत संभाव. ७२५ दैव वसिं पहिलो पार, तुह्म मान शंशय होह, शील-परीक्षा कारणि, कमल लीउ एक तोइ. ७२६ तव जिनवर पूजा करी, सरस सकोमल भाख, परमेस्वर गुण स्मरती, इम बोलइ प्रीउ साखि. ७२७ मन वचने काया करी, जउ नर वंछउ अन्न, तु कुरमायु कमल अ, जिम जल पाखइ वन्न. ७२८ जउ शीलि हूं माहा-सती, विकसित रहियो तोइ, शीलवती अहवू कही, पति-करि पंकज देइ. ७२९ अजितसेन एहवू सुणी, चतुर चमकिउ चित्ति, तय तणों परि करि ग्रहइ, पंकज तेह जडित्ति. ७३० वली वली जोइ कमल ते, चांपइ ह्रदय विचालि, जिम निर्धनि धन पामीउं, वली वलि जोइ संभालि, ७३१ दुरियन केरु प्रेम जिम, जे न रहइ चिरकाल, सज्जन नीपरि कमल ते, अविचल रहिउं रसाल. ७३२
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