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________________ गारमंजरी मुझ मन लागइ कारिमूं, वली वली कहितां नेह, पण थोड घणू प्रीछयो, तुझ साथइ ए देह. ७०१ जेहसि अविहड मन मिल्युं, जेहवी पाहणि-रेख, तिहूंसिउ लगाइ कारिमूं, बाहिरि वचन विशेख. ७०२ छेह लगइ वहिडइ नहीं, सही सुकुलीणां जेह, मन वचने काया करी, अवर सिंउ न धरइ नेह ७०३ रीति ए, जेसिहउं मांडिउ रंग, कुणी सुख-दुख तस कारणि सहइ, पणि न करइ नेह-भंग. ७०४ एक गुणवंतु परिहरी, अवर सिउं मांडइ प्रीति, चंचल रंग पतंग जिम, ए गणिकानी बगलां छीलरि जल पीइ, ये पामियां समण हंसा वरि तरसिया रहइ, पणि न मिलइ अवरेण, ७०६ तुझ विण मुज मनि को नहीं, अवर न सहुणा माहि, कइ सखी मन माहरू, कइ परमेश्वर जे जे बोल्या वोडा, ते सखि सुख-दुख जीवित तुझ कहर, आदक्षण दोखी दुर्मुख छइ घणा, संधइ थाइ पाडइ रेह, मन माणस तस बोलडा; म करसि सिथिल सनेह. ७०९ रीति. ७०५ प्रेम-वचन अजीत सेन वलतू भइ, रोमंचीउ - जाणे साच, करि वाच. प्रेमवंतिनां, एहवां सुणी रसाल, Jain Education International नयन वयण सिंउं मिलइ, अ राखियं न रहंति, पण अवरह सिउं तुज विना, मुज ७०७ ततकाल. ७१० गोरी कइ सूती नीसी बाहिरि किसिउ लडी, इम कां बोलइ बोल, आंगणइ, कइ गइ सान नीटोल ७११ जणावीइ, मन सिउं अविहड नेह, अहूं जाणइ आपणूं, मन वाहिलां छइ जेह, ७१२ ७०८ मनि किहिं न रमंति ७१३ मेरू कics शेष सलसलइ, सायर सूकइ तोय, सहि सज्जन सुकुलीण जे, वाच न चूकई तोय. ७१४ कामिनि नि पूरनिं, कुण रूधइ पसरंत, मन मानई आपि रहइ, लाजनी पालि रूपवती नई गुणवती, सुंदरि तूं सोनूं नई सुगंध वली कहु कुण मूल करिति. ७१५ शील For Personal & Private Use Only घरेईं, करेइ. ७१६ २०१४ P www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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