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________________ शृंगारमंजरी परीक्षा परगट महिमा शीलनु, जोउ शील सवि विद्या फलइ, सारइ इम पतिनूं मन स्थिर करी, सुख विलसइ दिन राति, राग-सरोवर सुर जीतां, केलि करइ किहांरइ प्रश्न किहांरइ खट हेली, कहा भाखा, नितु किहारि करइ नव- पल्लवी, कर किहारिं प्रेम-रसिं करी, साहामूं किहार हूं आलिंगन लीइ, नव नव सरस सुरंगी गोठडी, कहि स्नेह-रूस इ अबोलडा, सुंदरि दीन- वच पीउ पाइ पडी, मन्नावइ Jain Education International पासा - केलि, नवली रंगरेली ७३५ नयां इ अंक, हेव, नर सेव. ७३३ सुरत एकांति सबल स रुसणं. क्षण एक तीमन तीखां खट विण, भोजन मीनति करइ चरणे पडइ, हुं गुनही गोरी तुज मनि रीसतु, बांधि न Taणु विहसी समप्पीउ, सुंदरि सवाय लक्खु विकुविय दिय, गोरी गोरी हासा - रूषण, सही तो सिव रोसि वसलडु, न अत्थमिउ ससि ऊगमइ, धन गोरी कां करिं रूसणचं, यौवन आसन सयल समप्पीउं, विनयि पणय को वहउ वयरण, पयडइ जोइ निःशंक. ७३६ घरइ हरख मुज न सकुं खमइ भूज - युग फिटू गयूं एकांति. ७३४ वार मीठउं होइ, भलूं न होइ ७३९ न रमंति, करंति. ७३७ तोरु दास, केवार, उभी हविं अपराध नहीं करूं, बोलि न तूं प्रेम - गहे इंणि परई, मन्नावइ नीं सतनी छइ नेह, मान ज मोडइ कहुँ न मानइ जेह, प्रेम ते पाओ रंगि चडइ नेह तुडी, पय हणीया चिह्न कुसुम पीडतां, अधिक होइ इणि परि नव नव रमतिना, Car संयोग जाणता इसइ, जस पाइ वारं. ७३८ पासि, ७४० करीइ, तुज वेघि, भल्ली - वेध. ७४२ सुहाइ. ७४१ वलि होइ, न होइ. ७४३ मैंधि, निगूढ. ७४४ एक वार, सु वार. मानीयां, पडइ. ७४६ चित्ति, ७४५ For Personal & Private Use Only सुरत. ७४७ प्रकार, कहुँ धरि दोइ सुविचार. ७४८ ६५ www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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