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जयवंतरिकृत
तेहजि दैव संयोगि, तेणि दीपइं आव्या वाहाण न, ठेसि वागइ पग दुख तइ, उसीयालइ वलो भेटि न. २०२८ ते सुंदरि सुकंठ, ओव्या करता केलि न, ते देखी मुनि रुप, लाजिउ चित्त सुकंठ न. मु. २०२९ आपणूं कहीअ चरित्र, जाणी बंधु-सरुप न मु. दीक्षा लेइ सुकंठ, पुहुता बेहु देवलोकि न. २०३० असती सुंदरि सोइ, बंधव मिलिया देखि न, पूरावी सवि वाहाण, पुहुती को एक दोपि न. २०३१ वेशा थइ तिणि दीपि, विलसिया नव नव भोग न पुहुती नरक मजारि, भमसइ काल अनंत न. २०३२
सारथपति वालावि करि, जयंतसेन भूपाल, हैडा मांहि दुख धरइ, गुण समरइ ततकाल. २०३३ पाछां पगला नवि वलइ, नयन न खंडइ धार, सजन वुलावी आवतां, सुनु भमइ ढंढार. २०३४ सज्जन साथई जीव जा, जीवों किसिउं करेसि, ते सज्जन विण झूरतां, दुखुइ दिन्न गमेसि. २०३५ कहिसिउं हसोनइं बोलसिउँ, कहिसिउं करसिउ रंग, चित्ति चमककु लाइ गया, ते सज्जन अति चंग. २०३६ सज्जन आज वुलावीयां, जासइ केहि विदेसि, क्षणि क्षणि है९ चीतवइ, वाहाला कहीइ मिलेसि. २०३७ आज ऊभां इणइ आगणइ, कालइ करेइ गांमि, परमइ को परदेसडइ, मिलसि किहि किणि ठामि. २०३८ परदेसी सिउं प्रीतडी, हैडा मंडी काइ, आज आंहां कालइ जसइ, चित्ति चमकु लाइ. २०३९ सूनां मंदिर सेरीआं, खावा धाइ वन्न, सजन विछोहियां माणसां, जिहां जाइ तिहां रन्न २०४० राजा गुण संभारतु, जूरतु हैया मजारि, जव आविउ भूमिग्रहिं, तव नवि दीठी नारि. २०४१
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