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मंज
हे करतार वरांसडु, मोटु छइ तुज मांहि,
वहालां माणस मेलवी, करइ विछोह प्रवाहि. १८५६
वलतु सारथपति भणइ, जिहां संयोग वियोग तिहां,
तुझ स्यु बांधी प्रीतडी, तुझइ मोकलावी जतां,
भलि संतरि आव्या, घणी उपार्जन किद्ध,
तुम सरखां सज्जन मिलियां मन मनोहर सिद्ध. १८५९ प्रीति मिली तुझ सिउं खरी, रखे विसारु चित्ति, जिम वाधइ अधिकेरडी, ते परि करयो मित्त. १८६० दिन दिन हुइ वाघतो, तेहजि प्रीति प्रमाण, क्षणि वाधइ क्षणमां घटइ, ते प्रोतिं स्यु काम. १८६१
अवधारि
राजनजी अहवी गति संसार. १८५७ अवर न कोइ सु होइ, हैडइ दुख न समाइ. १८५८
इतर वाहाण सरावलां, सज्जन तणा सनेह, पहिलू हुइ थोडिला वाघइ छेहि . १८६२
पछइ
आसो मेहा करवडा, छेहि थोडा पाहिलं घणा,
नीच नेह - विलास, वेणी वास अवास. १८६३
जनम लगइ वहिडइ नहीं, कोंधी जेहसिउं प्रोति, दिन दिन वाघइ चंद जिम, अहवी उत्तम रीत. १८६४
छेहईं थोडी धुरिं घणी, चांपी नीरस थाइ, अहवी मठी सेलडी, पणि प्रोतडी न कहाइ. १८६५
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उछां मांणस प्रीतडी, सायर तणा कलोल.
क्षण वाघइ क्षण उसरइ,
मांडो न रहइ निटोल, १८६६ पय छंडइ महुरप्पणउं, छासि ज साथि मिलंति, दुरियन वचनि नेह तिजइ, ते मांणस नवि हुंति. १८६७ सज्जन दुरियन बोलडे, अधिकेरु मिलति, छासि संयोगइ दुध जिम, दहो-रस अक भलंति. १८६८ दहों अवगुण अक छंडीइ, जउ मंडीजइ प्रोति, मथतां मथतां नेह त्यजइ, नींच तणी ओ रीति. १८६९ प्रीति न कीजइ तेहवी, जेहवी जल कमलांइ, कमल मरइ जल सूक्तइ, जल न धरइ मन मांहि. १८७०
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