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________________ १३८ Jain Education International जयवंत सूरकृत सारस सरोवर अलि कमलांइ, हंसा कमल सुगंध, अह सवारथ मित्तडी, चकवी अनइ दिणंद. १८७१ चंद चकोरह सायरह सूरयनई कमलांइ, दीठिंथी मन उल्लसइ, नयण सनेह कहाइ. १८७२ मेह गजंति मोरडा, पामइ अति उल्लास, अ निसवारथ प्रीतडी, दीठिं हुइ विलास. १८७३ आंबा-वन नइ कोकिला, बप्पीहा नइ मेह, तेह विण न मिलइ अवर सिउं, सज्जन तणा सनेह. १८७४ राती कांबलिनी परइ, कोंजइ प्रीति सुचंग, बइठउ अविहड रंग. १८७५ उखेडिउ नवि उखडइ, सज्जन तणा सनेहडा, काला- उन समान, वरस सु सई जोइइ, तुहइ तेहवु वान, १८७६ दिणयर नई दिननी परई, पाली जइ प्रतिपन्न, दिवस विना सूरय नहीं, दिन नहीं दियर विन्न. १८७७ तेहवा कीजई मित्तडा, जे अविहड परिणामि, किमहि न हुइ पर- मुही, जिम भींतईं चित्रांम. १९८७८ सज्जन कीजइ तेहवा, जेहवा अडागर-पान, जिम भावइ तिम चाँपीइ, तुहइ रंग निधान. १८७९ विरला जाणइ प्रीतडी, विरला करी ते थोडा पहि थोडिला, कीधी ज लहति, पालंति. १८८० दीठइ बोलावइ करी, नितु नितु के मिलणेण, इणि परि वाघइ प्रीतडी, जिम वेलडी जलेण. १८८१ दूरि गई अवराह कई, जस हैडु न चलेइ, तेहजि सारी प्रीतडी, परिचय अवर कहेइ. १८८२ अणदीठि अति देखवाइ, दीठे अण बोलंत, इणि परि नेह ट ंति १८८३ अति मान विदेसि गईं, महिलय - जगह अदंसणि, अई-दंसणि णीयस्स, दुरियन बोलि नेह टलइ, मुकखुरस य नियस्स. १८८४ जेहवी कोमल आंखडी, तेहवी प्रीति कहाई, तिल-तुस-मित्ति विप्पअर, क्षण मांहि कुरमाई. १८८५ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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