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________________ (१८) कवि आ असह्य दशामां प्रभुने संदेशो मोकलबा प्रेराय छे. कवि प्रभुने कद्दे छे-'आ दशामां मारे तने संदेशो मोकलवा छे. ओ माटे मे चन्द्रने वारंवार विनंती करी पण ते आ कार्य करता नथी.' कवि आ अंगे प्रभु पासे फरियाद करतां जणावे छे चंद्रलउ वली वली वीनविउ, मोर नवि करेइ काज रे, विरह विगाय वेदना, पापी नवि लहइ आज रे.१ २१ कवि सीमंधर स्वामिना गुणर्नु वारंवार स्मरण करे छे, आ भावने धनीभूत करवा ते प्रभावक दृष्टान्तोनी योजना करे छे, क्षणि क्षणि समरु हु गुण तोरा, आसाढी मेह जिम स्मरइ मोरा, पुनिम दिन दिन जिम चंद चकोरा, फुल तणा गुण भमर भलेरा.२ २५ वळी कहे छे. किहां सूरजि किहां कमलणी रे, किहां मेहा किहां मोरं, दूर गया किम वीसरइ रे, उत्तम नेह सु जो हुइ.३ २९ कवि सीसंघर स्वामिना अपार गुण गावानी पोतानी अशक्तिना भावने प्रबळताथी मृत करे छे सायर मसि मेरु लेखणी तु, कागल अंबर-सार रे, तुहइ मननी वातडी तु, लखतां पार न आवि रे.४ ३४ वळो गुणनी अपारता अने तेनु गान करवानी पोतानी असमर्थता दर्शावता जणावे छे. अक्षर बावन गुण घणा तु, केता लखीई लेख रे, थोडउ घणइ करी मांनथ्यो, सुख होसिइ तुह्म देखइ.५ ३५ काव्यनी प्रशस्तिमां कवि कथे छे. आसो सुदि पूनिम दीनइ तु, शुक्रवार एकांति रे, कागल जइवंत पंडितनइ तु, लिखीउ माझिम रांतिइ रे. ३९ आम समग्र काव्यमां कविनो भक्तिभाव वाणीना माधुर्य अने ऊमिनी उत्कटताने परिणामे विशेष झळकी उटे छे. ६. बारभावना सज्झाय आ कृतिमां कवि मुनि जयवंतसूरि जैन परंपराने अनुसरी जैन धर्मनी जुदी जुदी 'बारभावना'ने सदृष्टान्त समजावानो प्रयास करे छे, जे मां कविनी दृष्टान्तो वडे तत्वने स्फुट कर. वानी शत्तिनां दर्शन थाय छे. काव्यना प्रारंभमां 'दुर्लभ' एवा मनुष्य जीवनमां 'बार भावना'- स्मरण करे छे. आ 'बारभावना' जिनशासनमा 'मुगतिना निधान' रूप लेखाय छे. एने 'सावधान' थई सांभळवानी कवि विनंति करे छे. १ सीमंघरस्वामि लेख, पृ. २, २१ २ अजन, पृ. २, २५ ३ ओजन, पृ. २, २९ ४ अजन, पृ. २, ३४ ५ जन पृ. २, ३५ ओजन पृ. २, ३९ ७ पुण्यविजयजी ग्रंथभंडार हस्तप्रत क्रमांक ६६८०, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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