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________________ ३४ Jain Education International 'जयवंत सूरिकृत शीलवती उवाच - नववया, प्रतिलोमजाति २३. न व व या पावक वाहन सज्जनह, वैरी वल्ली नाम, सुंदरि ससि-मुखी कटि-तटी, सिइ शोभइ परणामि ३९८ अजित उवाच - शीलवती उवाच - मेखलयो. पावक अरि मरूथलि, किसिउं नरगुण सखी बोलावि, वाहालेसर वाणी किसी, सरोवर पालि सोहावि. ३९९ शीलवती उवाच - नीरजसहिता, शृंखलाजाति २४. अजित उवाच - स्मर- थानक नव - बालिका, सिउं कहइ प्रथम संभोगि भय संयोगह नाम सिउं, शीलवती उवाच - मदनरहित, अजित उवाच -- कुण शीलव्रत योग्य. ४०० एकांतरित शृंखलाजाति २५. स्त्री-मुख सम वनवासिनी, किसिउं समावइ मेह, उत्तमजन वांछइ किस्युं, ब्रह्मानं कुण गेह. ४०१ शीलवती उवाच- सरसिजवास, एकांतरित शृंखलाजाति २५. अजित उवाच - शब्द एकांति भुजंगहर, कुण हरइ तिमि - रस निउण, मरण थकी अति दोहिल, सुंदरि ताहरू शीलवती उवाच - विरह, नागपाशजाति २६. अजित उवाच - कुण. ४०२ कुण निषेधा रथ हवइ, सज्जनवल्लभ होइ, नेह जणावइ मन तणउ, कहु कुण उत्तर सोइ. ४०३ शीलवती उवाच - नयन अजित उवाच अंतिम अखर कहु किसिङ, कुण कमलापति नाम, बाला लोचन उपमा, कुण पामइ अभिराम ४०४ शीलवती उवाच - हरिण. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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