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________________ जयवंतसूरिकृत सजन सलूणां मनि वसइ, अधिक वधारइ सोस, तनु भिजई भीतरि गलइ, वाहलां मोट उ दोस. ९७९ बहु गुण भरीइ सजन-तनि, पइसणि न लहुं भेय. तेह भणी हूं दिनि दिनि, पत्तल अंग करेइ. ९८० विरह-दवानलि जालीउ, छांटिउं नयण-जलेहिं. तुहइ सहइ पत्थर दिइ, दिनि दिनि पंडुर देह. ९८१ आंसूडां क्षणि क्षणि जरइ, नयनि अखंडी-धार विरह-सरोवर उलटिउ, नयणां वहइ घडनाल. ९८२ रोइ रोइ छूटइ आंखडी, हैडडूं किम छूटिइ, जिम दव लागु वेडिमां, भींतरि जूरि मरेइ. ९८३ भींतरि विरहानल जलइ, मूहि धूआं-नीसास, नयणे आंसूडां गलइ, हैयडइ. ऊठइ जाल. ९८४ समय समय ना बोलडा, प्रेम तणा एकांति, निःकारण मनि समरतां, हैयडूं हेजि हसंति ९८५ उजाणे लीलां करी, वाटइं सजन जाइ, वेध विलूधां माणसां, ते केडइंऊ जाइ. ९८६ सजन गुण संभारता, थाई अचेतन देह, भूख त्रस नवि सांभरइ, मूच्छाइ ससनेह ९८७ सजन पासई मन वसइ, सुर्नु भमइ ढंढार, दोहिलु पापी वेघडु, मरम भलु अकवार. ९८८ पारेवा नेहइ मरइ, दाडुर मेह विहीन, नेहइ बंद्धा सवि मरइ, जिम जल विरहि मीन, ९८९ बिरहिं मांणस सही मरइ, अहवा जउ न मरंति, दव-दधां हुइ साल जिम, निशि जूरि मरंति. ९९० पहिलूं नयणां नेह करइ,१ चिंता चित्ति घरेइ,२ नव नव संकल्प ऊपजइ,३ विरह प्रलाप दहेइ ४ ९९१ नयणां नाठी नीद्रडी,५ तनु जूरी जिब्भेय,६ आंखडीयां आंसू झिरइ,७ अति उनमाद वाहइ.- ९९२ गुण समरइ मछो दहइ,९ विरहि मरणां होइ.१० विरहीनी ए दस दिशा, साल समांणी होइ. ९९३ कबहि मिलुंगी वल्लहां, मन मिलणां अहिलास, इअ चिंत तां माणसां, जीवीय रखइ आस. ९९४ समरि समरि गुण मालती, भमर भमी झुरंत, तिम गुण समरि सजनह, झूरि झूरि मरंति. ९९५ मानस-गण मनि समरता, अवर सिउंन मलि हंस. गुणवंता ते सरभलां, तेह भला ते हंस. ९९६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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