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गारमंजरी
समरइ हाथी विजनइ, करहा मरुथलयांइ, तिम मन समरइ सजनह, जोयण लख गयाइ. ९९७ प्रगट करइ गुण तेहना, जेहसिउं जस अणुराय, एक वाहलां गुण-गान विण, अवर न कोइ सहाइ. ९९८ अछता गुण कहइ तेहना, जे जस उपरि रत्त, नाम लेतां मन उल्लसइ, जिहां हुइ अक चित्त. ९९९ दिन दोहिलई नीठर नहीं, रयण रडंत विहाइ, विरह तणी जे अघ-घडी, ते युग सरखी थाइ. १००० भूख नहीं निद्रा नहीं, तालोवेलि प्रलाप, दाधज्वर दहइ रोग ए, दोहिलु विरह-संताप. १००१ हैयडइ कांइ सुजइ नहीं, मुहुडइ नवि बोलाइ, है है विरहां माणसां, पहिलूं मति मंझाइ १००२ क्वचित् अभिलाख १ स्मृति २ गुणकीर्तिन ३, उद्वेग ५, व्याधि ५, जडता ६, चिंता ७, प्रलाप ८. सन्माद ९, मरण १०, एता स्मरदशा प्रोकताः, अतएवपृथक व्याक्खातां.... भागइ विरहानल तपइ, चंद्र दहइ बली देह, भागइ सरोवर उलटइ, उपरि' वरसइ मेह. १००३ हर-बाहन सायर-पिता, अमीय कला निकलंक, नलिनी सिउं तुज प्रीतडी, इम कां दहइ मयंक. १.०४ रेलइ चंदा चतुर तूं , चिंतिं न चित्त सुजांण, आगइ विरहानल तपइ, उ स्युं करइ परांण. १००५ रे शशिमुखि मनि समरि तूं , पूरव वैर विचार, मुख साथई बल मांडती, मुख केरइ आधारि. १००६ रे चंदा सुणि वत्तडी, गुणवंत जोइ न चींति, विहि विपडयां वर सोधीइ, ए कुण उत्तम-रीति. १००७ बां प्रीउ नावइ दैव तूं , तां शशिनइ जंपेइ, जव आवइ मोरु, वल्लहु, तव ससि महिम करेइ. १००८ रे पापी सुणि वंदला, विरही मारणहार, भयि जाओसि ए पापथी, बल तूं म करि गमार.. १००९ विस-सायर कुरंग-प्रिय, सच्च-चंद दहेउ, सीयल चंदनः कां दहइ, एमह भेय कहेउ १०१०
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