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________________ उत्तम आवासवाणु बनी गयु. वळी वडनी छाया छोडी ह रथनी छायामां बेठी केमके जे स्त्रीना माथा पर वृक्ष परथी पक्षीनी विष्ठा पडे ते स्त्री “छ मास "मां विधवा थाय अवुज 'शुकन ' छे. __ आ सर्व सांभळी रत्नाकरे विचायु " आ स्त्री शीलवती अने गुणवती छे." त्या रबाद ते शीलवतीने लई पोताना घेर पाछो फो. रत्नाकरे अजितसेनने सर्व वृत्तांत जणावतां तेने पण शीलवतीना शील अंगे खातरो थई, अने ते पूर्ववत अनी साथे आनंदपूर्वक रहेवा लाग्यो. अजितसेन मुख्य प्रधानपदे शीलवतीनी सलाह थी अजितसेन नित्य राजदरबारमा जाय छे. राजाना ते खूब आदर मेळवे छे. अरिमर्दन राजाने ४९९ प्रधान छे. ५०० मो मुख्य प्रधान पसंद करो तेने सगळो राजभार सेपी निवृत्त थवानेराजा अरिमर्दने मनसुबो को. आवा प्रधाननी पसंदगी माटे तेमणे जुदा जुदा ' कोयडा ' शोधी काड्या अने ते द्वारा अनी बुद्धिचातुर्यनी परीक्षा करवा विवायु. तेना अनुसंधान मा तेमणे सर्व समक्ष अक कोयडो रजू को. “ हाथीने। तोल केवी रीते करशो' ? आ बाबत सर्व प्रधाना मुंझाया कोई आने। उकेल आपी शक्यो नहीं. राजाओ आखरे अजितसेनने अने। उकेल पूछयो. अजितसेने शीलवती पासेयी आनो साचो उकेल जाणी राजा समक्ष रजू कये.'' "हाथीने प्रथम नावना बेसाडो ते नाव जला मुकत्री. नाव जलमां केटली डुबे छे त्यां आगठ निशानीनी रेखा कावी. पछी हाथीने उतारी आ रेखा सुधी नाव डूबे अटला पाषाण भावा. त्यारबाद आ पाषागनो तोल करवा. जेटलो ताल थाय तेटलुं हाथीन वजन जाणवू." उकेल जाणी राजा आनंद पाम्यो अने अजितसेनने 'देशपसाय' आप्या. वली अंक वार राजा राजदरबारमा ओक प्रश्न मुक्यो के "मने कोई चरणप्रहार करे तेने शो दंड करवा ?” सर्व प्रधानादि जणायु के तेने सबळ दंड करवो जोईए. आखरे राजा अजितसेनने आ प्रश्न पूछयो. अजितसेने शीलवतीनो सलाह-सूचना प्रमाणे राजाने आनो उत्तर आपतां कहयु"आप राजाने जे चरणप्रहार करे तेनो सत्कार करवो जोईओ." आ उत्तरथी आश्चर्य पामेला राजाए एनो खुलासो मांगतां अजितसेने प्रत्युत्तर आपतां कहयु, " आप राजाने आपनी राणी के पुत्र सिवाय अन्य कोण चरणप्रहार करवाने शक्तिमान थई शके ? तो.. वन्नेा सत्कार करवो जोईए.'' योग्य उत्तरथो प्रभावित थयेला राजाए अजितसेनने मानपान आपो. पांचसोमो मुख्य प्रधान निम्यो. एक समये राजसभामां राजा अने अजितसेन बेठा हता त्यारे एक-'दीन वणिके" आवी आंसु सारतां फरियाद करी के-“में एक धूर्तने गुणवान जाणी तेनी साथे मैत्री करी. हवे एक वखते तेना विश्वासे मारु धन अने स्त्री भळावी हु परदेश गयो, परदेशथी पाछा फरीने में धन अने स्त्रीनी मागणी करी त्यारे मारी खबर-अंतर पूछया बाद ते धूते कहूयु "देश-परदेश भमतां ते काई आश्चर्य जोयु होय तो मने कहे.” एटले में कहूयु “अकाळे फळेलु एक मोटु आभ्र. फळ नजीकना वनना कूबा मां तरतु मे जोयु छे. आश्चर्य छे के आ वखते आम्रफळ क्याथी ?" ते धूते आ अंगे शंका दशावतां जणाव्यु--"जो तारु' कथन सत्य होय तो मारा घरमांथी बे हाथे जे लेवाय ते लई जवु अने जो तारू कथन असल्य ठरे तो हुँ तारा घरमांथी बे हाथे For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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