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________________ शृंगारमंजरी वायस हुइ जउ सावडू, तु वंछित पुरेइ, वघ बंधन हुइ उवडू, पंथइ अति दुःख देइ. २२९ तुंडइ भूमि खणइ वली, वायस वाटइ जंत, तु ते वाटई पंथीआं, लाभ घणेरू हुंति. २३० वायस कंटक-तरु चडी, शबद करइ वार वार. तु तिहां कलेश हुइ धणउ, एहवउ शुकन-विचार. २३१ शुम भोजन वडि-सर करइं, शुक वृक्ष सरि कलेश, ध्याम पुंजि धान्य आगमन, खडगइ वैरि प्रवेश. २३२ . कुंभि तुरंगमि जउ चडी, वाइस शब्द करेइ. वरभोजन वाहलां मिलइ, साचु वयण धरेइ. २३३ वस्त्र-खंड लेइ धरि चडइ, वायस तु हुइ लाभ, चर्म-खंडि निधि दीसीई, कुसुम फलई हुइ लाभ. २३४ सूर्योदियि जउ नगरमां, आवइ वायस रंगि, दुख हुइ तेण देसडइ, मध्याहनइ देश-भंग. २३५ राय चौर-भय अस्थमणि, ए आगमन विचार, रातई जाइ गामि जु, तु देश-भंग अपार. २३६ शुष्क-वृक्षि प्राकारि जउ, वायस रुदन करंति, जलधर जल वरसइ नही, एहवं शास्त्र कहंति. २३७ भमता वलय कोरि जउ, वायस नयरि दीसंति, देश-भंग तु जाणिवु ए, पणि साचु हुति. २३८ वायस अरूणोदय समइ, ग्रह सन्मुख बोलइ, मान-मुहुत वली धन घणुउ, गृहनायक नई देइं. २३९ जु चडी घर-बारणइ, पंख धुणइ दिसि सोइ, तु दिन पांच माहइ वली, अगनि-उपद्रव होइ २४० तोरणि चडी खर-स्वर करइ, महुर सरई सुंजत्त, तु भूमि-तलि सांतीउं, निधि देखाडइ जत्ति. २४१ घर साहमू थइ घर जोइ, खर-स्वर वली बोलइ, वायस दिन पंचक मांहि, तु धन-हाणि करेइ. २४२ वली उठइ बइसइ वली, तेडइ निज परिवार, तु जाणे तिणि मंदिरई, चिंता हुइ अपार. २४३ डावू अंग जउ चंचु-पुटई, लूहइ धूणइ रीस, तु दिन थोडामां वली, सीस कचडइ निज सीसि. २४४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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