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________________ शृंगारमंजरी एक पक्ष सनेहलु, जेहवु दीप-पतंग, एक एकनई वेधिं मरइ, अवर न आणइ रंग.. ६१९ . नेह न ते सोहामणउ, जेहवु कोकि-कलाप, एक पक्ष सनेहलु, पगि पगि हुइ संताप. ६२० नयण समाणी प्रीतडी, जगि विरलानइं होइ, सुख दुख संघाति सहइ, नेह न ठंडइ तोइ. ६२१ चास-पींछ तणी परइ, बिहु पखि सरिखु रंग, थोडइ ठामिसु दीसीइ, सरखी प्रीति अभंग. ६२२ दुध अनइ जल जेहवी, जीह सवाली प्रीति, आपणपिं दोहिलं सहइ, भेद नहीं जस चींति ६२३ ढाल १७ राग सवालाखी सींधूड ( समुद्रविजय रायां कुंअरू रे, देशी ) एक दिन वनिता वीनवइ रे, प्रीउडा तूं अवधारि, महीयल महिम वधारवा रे, जईइ राज-दूआरि. ६२४ वाहलाजी सुगुणा कीजइ संग, जेहनु रंग अभंग, वाहलाजी वाधइ प्रेम सरंग, वाह ...दुपद तथा आंचली ६२५ दुरियननि कंपावीइ रे, कीजइ पर उपगार, उत्तम भूपति सेवतां रे, वाधइ महिम अपार, ६२६ वा. सज्जन नई संतोखीइ रे, कीजइ उत्तम काम, सुगणां साथई हीडीइ रे, राखी जइ जगि नाम. ६२७ वा. यौवन-वइ गुण संचीइ रे, कीजइ उत्तम संग, तिणि मारगि नविं हीडीइ रे, जिहांथी हुइ कलंक, ६२८ वा. पापी यौवन · दोहिलूं रे, पगि पगि आल चडति, छत्र न हुइ जस सिरिं रे, निश्वई तेह पडंति. ६२९ वा. देव वसिं तात तुझ तणउ रे, पुहुता जउ परलोकि, विश्व तणी स्थिति एहवी रे, कुहुनइ कीजइ शोक. ६३० वा. बाल-लीला हवइ परहरी रे, गुण उपराजन काज, वाहाला उधम कीजीइ रे, सेवी जई सुराज. ६३१ वा. सहू सिउं प्रेम सु राखीइ रे, गरव न धरीइ लगार, वचनइं सहू संतोखीइ रे, दीजइ दीन आधार. ६३२ वा. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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