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________________ ५८ जयवंत सूरिकृत सज्जन स्युं सज्जनपणं रे, कठिन सिंउ कठिन सभावि, भर तणा गुण आवीइ रे, भूपतिनइ प्रभावि. ६३३ वा. तात थिकी गुणि आगला रे, उत्तम सुत ते जाणि, रवि- शनि सरखा वली रे, तेहनू किसिउं वखाण. गुणि अधिकाको तातथी रे, सायर-सुत जिम चंद, अजूआइ कुल निरमलूं रे, सहूंनई दइ आनंद. ६३३ वा. तेह भगी राज-सेवनार रे, कीजइ अति सुविवेकि, मान लीहीजइ महीयलि रे, आवइ अंगि विवेक. ६३६ वा नरनई स्त्री दइ सीखडी रे, ए नवि घटतूं होइ, तुइ जे घटतूं कहइ रे, डाहइ मानवूं कमला जातिं कामिनी रे, सरसति श्री स्त्री माटइ न उवेखीइ रे, गुण हवडां अजितसेन इम सांभली रे, वचन धरी मन मांहि, नितु जाइ राजमंदिरं रे, सेवइ अजित उछाहि. ६३९ वा. सोइ. ६३७ वा. Jain Education International अवतारि, संसारि. ६३८ वा. ढाल १८ राग काल हरिउ ( सासू पूछइ सूणि नव वहूआरू, ए देशी ) ६३४ वा. सकल सभानई अजित रंजावइ, भूपति दिइ तेहिनि अति मन, सिई च्चारनइ अधिक नवाणुं, राजन नइ धरि छइ रे प्रधान. ६४० अनुदिन राजन चिति विमासइ, चिंता-सायर दूतर अपार, निचित थाऊ हूं एह चिंताथी, कुहुनइ सिरि सूंपी राजभार.... दुपद तेह को न मिलइ गुणवंतु, वीसासीक नई बुद्धि निधान, पांचसइ मांहि मूलगु, जेहनई करि थापइ परधांन. ६४१ अ. तेह परीक्षा जोवा काजई, राई मांडिउ विसमुं संच, सनई कहइ पटहाथीउ रे, ताली मांन कहु रे प्रपंचि ६४२ अ. मेरु ती परि कुइ न तोलाइ, अजित तव पूछी गृह-नारि, शीलवतीथी बुद्धि लहीनई, जाणिउ तोलवा तणउ प्रकार. ६४३ अ. हाथी प्रवहण मांहि चडावी, जल मांहि ते राखी यान, प्रवहणि नीर चडिउं जां उंचूं, तिणि फलहइ की घूं अहिनांण ६४४ अ. गज काढी पाषाण भरीनई, जां लगइ आंकइ आव्युं नीर, ते पाषाण तोली मान आपाइ, अजितसेन ते साहस धीर ६४५ अ. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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