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________________ शंगारमंजरी एहवी अजित तणी मति जाणी, रंजिउ सुगुण सुवेधी राय, मान महुत अधिकेलं आपइ, तुठउ दिइ धण देश-पसाय. ६४६ अ. भूपति पूछइ वली एक दिहाडइ, बइठउ सयल सभा मजारि, चरण-प्रहारि हणइ जे अह्मनि, तेहनि सिउं कीजइ सुविचार ६४७ अ. के अविचारी उच्छक जंपइ, माणस रूपई ढोर गमार, डंड सबल तेहनिं प्रभु कीजइ, जे तुह्मनई दइ चरण-प्रहार, ६४८ अ. अजितसेन रांइ बोलाविउ, जाणी पुरव बुद्धि-विलास, सो पणि जंपइ स्वामी वीन . तुह्मनई एहनु अरथ विमासी. ६४९ अ. दहा घरि आवी नइ स्त्री कहनइ, पूछीउ नस वृत्तंत. शीलवती उत्तर दीइ, अवधारु तुझे कंत. ६५० भूपनिनि चरणे हणइ, कीजइ तस सत्कार, दीजइ वली मन भावतूं , मान-महुत अपार. ६५१ रे गुणवंती गोरडी, अमीय झरती वाणि, वाहलां ए बोलिउं किसिउं, सुंदरि सुगण सजाणि. ६५२ शीलवती वलतं भणइ, स्वामी जउ विचार, सूत दयिता विण भूपनि, कुण दिइ चरण-प्रहार. ६५३ कुण दुहवइ वाहलां विना, अवर न चिंतिं अणाइ, कुण संतोखइ ते विना, अवर न कोइ सुहाइ. ६५४ जेहसिउं हुइ प्रेम-रस, ते दइ चरण-प्रहार, क्षण एक मीठउं रूसणउं, जेहसिउं प्रेम अपार. ६५५ तां दूखण देखइ नहीं, जां मनि हुइ रंग, जे जे बोलइ बोलडा, ते ते जाणइ चंग. ६५६ दुख-सुख सरिखां लेखवइ, नेहई बध्या जेह, कमलि बंधाणउ भमरलु, सुख मानइ ससनेह. ६५७ तेहनइ मनि गुणवंत ते, जेहसिउं लागु रंग, जल-पंकइ पंकज वसई, तुहइ राचइ भुंग. ६५८ ते तसे न जोइ सूप-गुण, मन मान्या सउं कोइ, वायसनई मोह लींब सिउं, तिणि दीठइ सुख होइ. ६५९ मनि मान्यां मेहलई नहीं, वरि सिरि वहइ कलंक, मृग सिउं अविहड मन मिलिउ, छांडइ नहीं मयंक. ६६० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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