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________________ शृंगार मंजरो हरिणां राय सुजाण तूं, जे गोरी मुज मेलि, वेणी जस हर-हार सम, जंघा कोमल केलि. १२१८ भमरा विरहिं दूबलु, मालति समरि म रोइ, वाहलां विरहिं दीहडा, दुखुइ सहिणा होइ. १२१९ भमरइ सेवी मालती, छंडी असे तेह सदेव. १२२१ १२२२ चालिउ अजितप्रधान, मंडई समय तणउ वियोगडु, कां दाखइ जगदीश. १२२० भमरा मन गाढडं करी, दीहा नीगमि केइ, वाहाला विरहिं दींहडा, नहीं जासइ भमर जीवंतां मांणसां, कबही फलीइ आस, कालि सुजाति पाणसई, करसइ भमर विलास. नि वनि इणि परि पूछतु, अवसर जाणी आपणउ, इणि अवसर रयणी तणउ, खीण- तेज दिनकर थयु, जागिउ आधुं - खाधुं कमल-दल, आधु मित्त परभाव देखि करि, कोकिं कोकी विरहीइ, जिम ते पाछइ नवि लीउ, दि आनंद चकोरनइ, है है दैव अटारडु, रोगी विरही दुःखीयां, नीद्र न आवइ तिहुं जाणां, नक्षत्रां परगट थयां, उगिउ जेहनिं वाहलां वेगलां, तस मनि लागइ जाल. देखी चंदउ ऊगम्युं, जागिउ विरह विकार, अजितसेन नइ इम वीनवइ, समरी प्रेम-अपार चंदा तूं देसाउरी, होंडइ देसि विदेसि, चंद्र - मुखी ते गोरडी, किहि जाणिउ संदेश. १२३१ चंदा मित्त सुमित्त तूं, नितु जाउं बलिहारि, विरहि-दाघां मदन रसाल. चंचु पराणि, चक्रवइ छंडिया प्राण. तिम मेहलिउ नींसास, समरी चकवी एक सुख रयणी जस मनि १२३० मांणसा, सुजन संदेशइ ठारि. १२३२ कंत - संदे पठवइ, दैवई कीउ विछोह, गोरी परदेसई गइ, मत उतारे मोह. १२३३ मनसिउं धरयो प्रीतडी, नथी मिलवानु संच, रजिया विण तु किम मिलूं, जो करूं कोडि - प्रपंच. कंत-संदेसु पठवइ, चंदा करेइ साथि, वीसारु रखे, जीव तुह्मार हाथि. १२३५ १२३४ गोरी 73 Jain Education International मयण पराण. हवऊ सुविशाल, १२२३ For Personal & Private Use Only १२२४ १२२५ प्रेम - विलास. १२२६ प्राण हरे, एक दुःख देइ. १२२७ वइरणि तांह, धीकइ दाह. चंद-रसाल, १२२८ १२३९ ९७ www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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