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________________ जयवंतसूरिकृत पीन-पयोघर भारीआ, दोहिल चालइ कोइ यौवन नि उलंभडा दिइ, सही बोलइ ... कोइ, तब कोइ बोलिइ कामिक, अंतरि रही सहिकारी, छउं अह्मे परउपगारीय, अह्म करि आपु भार, ५८९ कोइ कहइ सखी नख-क्षत रूपि, राहुथी बीहीतु ससि-भूप, तुड-पयोधर डूंगरमां वसइ, तेह भणी उरि चोली तूं कसि. ५९० सखि तुज मुख-ससि लोभीय, अलि-गण रूपिं राहु, एह भमइ तुज मुख पाखलि, अंबरि वदन विछाहि, कोइ कहइ तुज कुच-युगि, जाणी गज-कुंभ भ्रंति, वन-गज भडवा आवइ ए, कोइ सखि अम भणंति. वदन चंद-सहोदर ताहरूं, कोइ सखी बोलइ नवि आतलं. सा कहइ हसीइ नवि हे सही ससि-कलंक माहरइ मुखि नहीं. ५९२ ५९३ पातलडी कटि-लंकीय, पीन-पयोघर भारि, लडसडती कोइ बासीय, चालइ सहीय मजारि, सही निं को कहई हे सहि, सहिनि साहि न बाहिं, जउ पडसइ थण भारीय, हासू हसइ वन माहि. कोइ कहइ प्रीउ राति कां पीडिउ, हदय बारि थोडेससि न भीडिउ. तीने पयोधर हईइ जगि रिलाणु, तेह भणी कंत तुंज सिउ रीसाणउ. ५९४ को एक कामिनि सुंदरी, प्रीउ सिरं कीय संकेत, वनि सुणी जन-कोलाहल, पगलां सुणीय समेत, वली वली जोइ वालीय, चकित जसी संदेह, सघलइ देखइ तनमय, जेहनि जेहसिउ नेह. ५९५ पंठिथी सही पालव ताणइ, कामिनि प्रीउ आव्यु जाणइ, रहि रहि समय हवडां प्रीउ नहीं, पूं ठेथी इम सुणी हसइ सही. ५९६ किंहि चाचरि किंहिं चउवटइ, किहिं त्रिवटइ सही-वृंद, केलीहरि कुसुमा-करि वसंत खेलइ आनंदि, लटकति वेणि सुमेहलीय, झांझर नइ झमकारि, थण भारि कडकडतीय, चोली कसीअ अपार. ५९७ चतुर कामिनिना गुण जोइवा, रसिक मानव आवइ खेलवा, रितुवसंत जाणे भलई आवीउं, रसिक मानवइ मनि भावीउ. ५९८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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