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शृंगारमंजरी
कोइलि-कंठ रसालीय, बालीय दिई किहि रास, . सुंदर प्रीउ सिंउ तरु-तलि, कोइ करइ मदन-विलास, कुसुम लेबा किहिं भमरनिं, सहीय ऊडाडइ कोइ, प्रेम-विछोह न कीजीइ, इम सही बोलइ कोइ. कामिनी-मुखि बइठइ भमरलु, कर वडइ सा उडाडइ भमरखें, कोइ कहइ सही भांजि म आसडी, जउ हुइ तु सही अह्मारडी ५८०
कुसुम-टोडर कोइ गूंथीय, घालइ सहीय नई कंठि, कोइ सही चीर-पालवि, पालवि बांधइ गठि, एक प्रीउ एक थाइ कामिनी, एक सही जोसी धाइ, छेहडइ छेहडा बांधीय, परणावइ वन माहि. ५८१ नयन-बाणि वनिता को ताकइ, पूंठि को सही आवइ ढांकइ, कोइ कामिनि कोइलिनई खीजइ, कुहु कुहु करी सहीनइं रीजवइ. ५८२ मुह मचकोडइ चालती, नव भोगवीय को बालि, लडसडता गजगामिनि, डगलां भरइ रसाल, सहीयर तेवडा तेवडी, कारण पूछइ कोइ, पइ भागु सहि कांटडु, इणि परि बोलइ कोइ. ५८३ ओ सही तुजनि प्रीउ तेडइ, ताहरी क्षण न मेहलइ केडी, कामिनी जोइ पाछउ वाली, वाही रे सही को दी ताली. ५८४ कहि-न सखी तिं वेणीय, बांधीय कुण अपराधि, रहि रहि गोरी पूछि म सिथल थइ वली बांधि, रत-समरि रही पाछलि, वली चडी परकरि अह, इम कोइ बोलइ बालीय, बंधन-न कारण तेह. ५८५ पीन पयोधर तूंतां पातली, सुमुखि दुर्मख कठिन सूहांली, . कहि न सखी एतां किम बाजसइ, इम कही वनि कोइ सहिनइ हसइ. ५८६ कहि सखि सिउं तोरइ हइअडलइ, पंकज मयण तणांइ, .. ओक नालई दोइ पंकज, कहि सखि केम मनाइ, अथ चकवा दोइ मुख, ससि आगलि किम रहेइ तेह, लावण्य-सरोवर बूडतां, यौवन-गज-कुंभ एह. ५८७ पातलइ कटि-लंकइ जग जीतु, सिउं करसइ पीन पयोघर सही तुं, . कोइ सही निज सहीनई इम हसइ, ते सुणी वनिता मनि उल्लसइ. ५८८
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