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जयवंतमूरिकृत
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कुंकुम-गोरे गालडे, सोविन-कांटडु नाकि, अघर-प्रवाली रातडइ, नागर-वेली राग, नविसिर-मोती जालीय, कंठि मनोहर-हार, गजगामिनि मृग-लोयणी, जोणे सार संसारि. ५६९ बांहडी लहिकइ लटकाली, मानिनी मन मोहइ मटकाली, सोहइ कंकण सोविन-चूडली, पान-अडागर धरी करि बीडली. ५७० नख-शर घाइ न उसरइ, सूरा सुरत-संग्रामि, ते गुण जाणि मानिनि, स्तन नि दिइ बहुमान, चंदनि चरचीय चोलीइं, दीधु उचित पसाय, नवलख हार स आपीय, राख्या हृदय नइ ठाइ. मयण-मंदिर सोहइ नाभि रसालि, प्रेम-सरोवर ओ शंसय टाली, चतुर लोचन-चकोरां जिहां भमइ, चक्रवाक पालि उपरि दोइ रमइ ५७२ खलकति सोविन-मेखला, सोहो त्रिवली मजारि, पहेरणि नवरंग-फालीय, झांझरनइ झमकारि, पय अलता-रस रंजीय, रंजी नयन विलासी, को सही सिउं कोइ प्रीउ स्युं, वनि खेलइ मधुमासि.
५७३ कामिनी नयन-भाव देखाडती, चित्त चंचल वेगइ पाडती, चरण-झांझरडां ठमकावती, काचूङ उरि नीलु सोहावती. ५७४ ओक प्रीउ-अंचलि वलगीय, अक वलगी सही-हाथि, वातलडी काइ करतीय, प्रेमइ घाली बाथ, कोइ कहइ सही पडखिनु, हूँ आवु तुज साथि, इम आवइ रस खेलवा, वनि बनितानु साथ. ५७५ काइ सखी तिहां वीणि वजावइ, पीन-पयोधर कोइ नचावइ, झांझरडां को सखी ठमकावइ, कोइ चंचल तिहां नेत्र चमकावइ ५७६ नवरस नाटक वनि तिहां, वनिता कोइ करंति, कोइ बइठी केलीहरि, प्रिय-सिउं केलि करंति, बालीअ आंबला-डालीइं, हीचोलडी खाइ, कुंतल मेहली मोकला, को सही केडइ धाइ. कोइ सखी चालइ कडि मरडी, कोइ करइ नयन-भ्रम करडी, कुसुम कुंदक कोइ उछालइ, कोइ जइ सहीनिं बांहि झालइ. ५७८
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