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शंगारमंजरी
कोइ आवइ वनिता - वसि, कौतुक जोवा कोइ, कामिनि रसि कोइ चंचल, मित्र सिउं प्रेमिं कोइ, मुखि तंबोल समारीयु, उरि धरि चंपक - माल, कुसुम - माल सिरि घालीय, करि धरी कुसुम रसाल.
कामिनी दोइ अंतरि धाई, बेहूनि अडतु कोइ जाइ, कोइ संभ्रमि साहामू आवी, नारि सिउँ दिइ आलिंगन भावी. ६००
दोधक भइ कोइ कामूक, कोइक गीत सगाइ, कोइ ताणइ छानु पालव, को स्त्री केडीऊ जाइ; कमल-नाल कोइ जल भरी, छांटइ थगह विचालि, कोइ मचकावइ आंखडी, कोइ वलगइ तरू - डालि
कोइ कोतक - दलि कामूक, कामिनी रूप लिखेइ, वली वली नयणे निरखीय, हइडा सिउं चापेइ, मुखि चुंबन देइ सादर, सीस नमावइ पाइ, प्रेम - गहेलां मांणस, देखी आकुल थाइ,
कुसुम - कुंद कि प्रेम गाथा लिखी, स्त्री साहामूं नाखइ मन उलखी, कामिनी - गण जेणि थानकि बोलइ, कोइ कामूक रहइ तिणि उलइ. ६०१
भमरल कामिनि नइ मुखि देखी, भमरला तिंकाइ रस लीजइ, अझे
नि कहिं कोइलि वाणीय, सुणीयति आंबला - डालि, कोइ पंथी जाणइ एणइ वनि, आवी मोरी बाल, आवि-न गोरी आलिंगन, देइ मुज पूरि रुहाडि, कांइ रही कहइ वेगली, वाहाली भुख देखाडि.
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कामिनि जाती देखीय, कोइ नर चतुर सुजाण, सांबलि नई मसि धातीय, बोलइ सरस सुवाणि, सांवलि सरखां मांणस, दैवि सरज्यां कांइ, देखीतां अति मनोहर, हुंस न पुरइ जाइ.
६०टें
कोइ मानव बोलइ स्त्री पेखी, सुंदर पणि सहामुं जोइ जइ. ६०४
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कोइ कामुक कुच काहि सिउ (१), पीन पयोधरि देखी एति कसिउ, कहि-न कंचुकर्तिसियां फल काम्यां, जेणि सुंदरि थणनां फल काम्यां. ६०६
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भमरन कोइ विरही इम कहइ, भमरला विरह वेदन तुं लहइ. मालती विरहिं तूं सामलु, कामिनी विरहिं हूं दुबलउ. ६०८
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