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आ 'फाग' मधुमासमां गवातो हशे से वस्तु अही स्पष्ट थाय छे. अत्रो 'फागु' काव्य से गेय प्रकारनी रचना हती तेनेा स्पष्ट उल्लेख मळे छे. ते दृष्टिले आ 'फागु' नेांधनीय छे.
४. सीमंधर जिनवर [विनती] चंद्राउला' २७ कडीनी आ रसिक कृतिमां कविए 'सीमंघर भगवान'ने आरझु अने आरतभरी प्रार्थना के विनती करी छे. एना अन्तर्गत भावोर्मिना प्रबळ आलेखनने लीधे आस्वाद्य बनी छे.
काव्यना प्रारंभमां ज कवि पोतानी विनति सांभळवानी आग्रहभरी याचना करतां
विजयवंत पुक्कालावती रे, विजयापुव्व विदेहो, पुर पुंडरीकु पंडरगिणी, सुणतां हुइ सनेहो. सुणता हुई सनेह रे हैईइ, स्वामि सीमंघर वीनती कहीइ, गुणसौभागइ त्रिभुवन दीपइ, केवलन्यांनइ कुमती जीपई...२ ।।
कवि 'सीमधर भगबान'ना गुणर्नु स्मरण करतां कहे छे-'हु तारा गुणनी खाण 'मांथी थोडा ज गुणतुं स्मरण करु छ. तो आ 'थोडा' 'ते घणा करीने जाणजो'-आ भावने कवि दृष्टांत द्वारा असरकारक रीते अभिव्यक्ति आपे छे.
हाथी समरइ विंझनइ रे, चातक समरइ मेहो, चक्रवा समर सूरनइ रे, पावसि पंथी गेहे।, पावस पंथी गेहे संभारइ, भमर मालतीनई वीसारइ, तिम समरहु तुम गुण खांणो थोडाइ कहिणइ घणु करी जाण्यो.३ १९
कवि प्रभुना विरहथी व्याकुळ बनी ऊठे छे अने कहे छे के जो एने पांख होय तो ते ऊडी अनी पासे आवी जाय. आम अमनं मन अनेक मनोरथ करे छे पण पातानु मन अनेक 'रोगा'थी भरेलु छे अटले शुथाय.
विरहाकुल ऊडी मलिउ रे, जउ हुइ पंख प्रमाणो...४ २० कवि पोताना प्रीतिनी महत्ता वर्णवता कहे छेसगपण हुइ तु ढांकीइ रे, प्रीति न ढांकी जायो. विहाणि छाबि न छाहीइ रे, लहिर न दोरि बांधायो, लहरि न दारि बांधजो जाइ, होइडा हेजइ नेह जणाइ, चंद्रा तु संभार्या साखी (अ)हविहड रंग जसिउ छइ लाखा.५ २२ जी. ला. द. हस्तप्रत प्रथभंडार, हस्त प्रत क्रमांक ३५०१, पृ. ४-७, ला. द. भारतीय संस्कृति
विद्यामंदिर, अमदावाद. २. सीमंघर जिनवर चंद्राउला, पृ. ४, १ ३. एजन, पृ. ६, १९. ४ एजन, पृ. ६, २०. ५ एजन, पृ. ६, २२,
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