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________________ धंगारमंजरी विरह थकी वरि विख भलू, नितु सेव्यां न मरंति, जिम जिम विरह जि सेवइ, तिम तिम अधिक दहंति. १०९१ मित्त न कीजइ जां लगइ, तां सुख हुइ चित्त, दुख लेइ सुख नीगमिउं, जिणि को कीउ मित्त. १०९२ सज्जन को तहेवु नहीं, इणइ संसारइ तेह, अस दुखी देखी अप्पणू , मन-ठारवण करेइ. १०९३ जेहनइ सज्जन को नहीं, सुख-दुख नउ विश्राम, रान-तलाव तणी परइं, तस मन रहइ किम ठामि. १०९४ जे अध-चहिची दुख लीइ, तेहनइं खु कहेउ, निरगुण नीरस दुख कहिउं, जग जण हास करेइ. १०९५ जे जाणइ दुख-वेदना, तेहनई कहीइ दुखु, जण हातूं मनि उरतु, जउ मन दीजइ मुक्खु. १०९६ विरला जे दुख सांभलइ, विरला मनि धरइ दुखु, विरला पर दुखि दुखीया, विरला भंजइ दुखु. १०९७ पेट भरिउ परहंसडे, उपरि बालइ वेध, ठारवणउं एकइ नहीं, किम रहिसइ ए देह. १०९८ दैवइं सरज्यां वेगलइ, केतु कीजइ सोस, कुण लहिसइ रानइं रडिउं, हैडा करि संतोष. १०९९ गोरी कंत वियोगडइ, शिथिल हुइ वली चियारि, त्रणि वाधइ च्यारि उसरइ, त्रणे दहइ अपार. ११०० कंचू १ कंकण २ नेउरी ३ मेखल ४ शिथली होइ, निशि । वासर २ नीसाणडु ३ त्रणि अखूट सजोइ. ११०१ भूख १ तरस २ तनु ३, नींद्रडी४ च्चारइ उछां थाइ, त्रणे रितु असुहामणां, वल्लह विरह न माइ. ११०२ सही ए अचरति एक मुज, कहुनि कहिउ न अंति, साल खटकुइ हैडलइ, नयणे नीर गलंति. ११०३ . खजन रूठा किम जांणीइ, नवि दुहवइ वयणेण, मारइ नहीं विख आयुधिं, परि मारइ विरहेण. ११०४ बापीडा पीउ करइ, मारि म वयण-सरेण, ते माणस सिउं मारीइ, जे मारियां विरहेण. ११०५ सारसडा तोरी पांखडी, तु जाणसि सुप्रमाण, अउ लियावसि संदेसडु, वल्लभ पंख प्रमाणि ११०६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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