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जयवंत सूरिकृत
लोक- अयाण अबुज कहइ, डीलिं दूबलां कांइ,
जाइ. ११०८
जस डीलई कोउ बलइ, ते किम सुंदर थाइ. ११०७ को न लहइ मन - दुखडां, जण जाणइ सी दाइ, जे कारणि हूं आवद्धं, ते उवेखी सूडा तूं महीयलि भमिं, कुण रलीयामणउ देश, जिहां पीउ सोइ सोहामणुं, अलखामगड असेस ११०९ वेध लगाडी जे गया, जां ते पीउ न मिलति,
तां मन के दुखडां, कुण देखी भजंति. १११० सुगण सलज्जह मयग-भड, पसरिउ किसिउ करेइ, पंजरि - बद्धउ सीह, जिम, अंगच्चियभिव्भिइ. १९११ अथ पनिहां
नय
पीड परदेसिं जंत कि सुखु वुलाबीयां, निद्रा भूख कि ए नवि आवीयां, अण-तेडिया आव्यां दुख किहांथी एवडां, पनि अन-तेडियां आवंति कि नोच सहावडां. १९१२ अण-दीठई उचाट कि दीठई मन कलमलइ, आगलि रहि दहइ मान कि दूरई जीउ बलइ, आवटणुं निसि दीह कि घडीअ न मन रहइ, पनि० जेणि कीया सनेह, किउ सुख लहइ. १११३ नयरि अयान अबूज कि बहूआ नर वसई, सो सज्जन विण रान कि मुज मन डसडसइ, सेरी सुनी चाहत मनि दुख उल्लसइ, पनि सज्जन सोइ परदेसि कि परि परि विहिकसइ. १९१४
काज उपाइ सुपरि निसि-दिन आवतां, फेरां देतां लक्ष कि सेरी सोहावतां, एक जि माणस कारणि फिरि फिरि पेख़तां, पनि० तेह जि सेरी आज न सुहाइ देखतां. १११५ मंदिर मोटइ गुखि कि निसि-दिन खेलतां, मन मोहन जे ठाम कि घडीय न मेहलतां, तिणि थानकी आज कि बइठां नवि गमइ, पनि अबहीं रान समान कि तिणि घरि मृग रमइ. १११६
गाथा गीत कथा - रस पीउ सिउं खेलतां,
सही सिउं जे पुर, घडीअ न गमतूं महेलतां, मिं जाणिउं सही गाम कि महिमा एवडु, बूपनि० जिउ
एह
पतर पीउ तेवडु. १११७
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