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यंगारमंजरी
चैत्तइ मुरिया चंपक मलु-वनि महिंमहिउ, मलयानिल विख काल कि पंथीकुं गहिगहिउ, संयोगी मन साथि कि तरुयर कंपलिउ, पनि किशलय विरही चीत कि जाणे दव बलीउ. १११८ मनोहर मास विशाख कि फुलइ गहिबरिउ, वन वाडी शुक मधुकर कोकिल परिवरिउ, विरहि कू पीउ पंथ कि जोता मन खलभलिउ, पनि० पीउ आवत अण-अंत कि विरहानल टालिंउ. १११९ मुरिया अंब प्रलंब कि मधुकर रणजणउ, कोइलि कुहु कुहुकार कि पंथी मन कणमण्यु, भोगी मास वसंत कि परि परि वनि रमइ, पनि० याके पीउ परदेसी किम गमइ. ११२० आगइ पीउ परदेसि कि घडीअ न वीसरइ, विरहानल दहइ दिह कि रितुपति अणुसरइ, कोइलि दाधइ लूण लगवाइ आंबलइ, पनि० कुहुनि कहइ पीरि कि भीतरि जीउ बलइ. ११२१ देखी मुरिया अंब कि कुहु कुहु कोकिला, विरही माणस मारि म गरव न अति भलो, वाहलां माणस संग कि दस दिन गहिगहइ, पनि० प्रिय-संगम सदैव कि दैव न सांसहइ. ११२२ साचुं नाम सु नाम कि जेठ सवे वडु, रयणी दिवस अनीठ कि नावइ छेहडु, एक परि खोटुं नाम कि लहुउ गुणि करी, पनि० विरहिं मरियां माणस मारेइ वली वली. ११२३ मनोहर मास आसाढ कि बादल छांहीया, सेजि सुरंगा सज्जन पीउ गलि छांहीया, विरही के तनु साथि कि सरुवर सोसीयां, पनि० कबही मिलइगा पीउ कि पूछइ जोशीयां. ११२४ वज्जई उन्ही झालकइ डीलई विरहनी, हैडु दुखि जलंति की आशा नहानी, सहु नीसासे चलंति रहु हूं किणि परि, पनि० पीउं विरहि दहइ देह के उन्हालो परिवरि. ११२५
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