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________________ (५८) . दर्शक अने बीजो पुरुष सर्वनाम विभक्ति एकवचन बहुवचन पहेली सा, स, सं, सो, सोई, - ति, ते, तेह, तं, अहे, अ, इ, ओ बीजी त्रीजी इणि, तिणि, तिणइ चोथी पांचमी छठी तसु, तासु, तास, तेहनां, तेहनी सातमी तिणि, तिथि नांध :-साधित रूपोमां इसिउ, इसिउ, इसियां, अहवू, अवडां, अवडु, जेहवा, जिसिया, जिसिउ, जेहसिउ, जेता, तेवडा, तेवडी, तेवडु. स्ववाचक : अप्पणा, आपइ, आषि, आपणउ, आपणमइ, आपणां. सर्वनामो : आपणु, अप्पणू, अप्पणु, आपणेइ. अनिश्चित सर्वनामो : कु, को, कोइ, कांइ, कई, केवि, सवि, सहू, केता. संबंधक सर्वनामो ; जे, जज, तंतं, जेजे-तेते, तां-जां. . प्रभार्थ सर्वनामो : किसिउ, किसिउ, केतइ, केतला, केतलू. वचन : विकारी अंगवाळा नामना बहुवचनमां पुलिंगमां अंगनो 'आ' मळे छे अने नपुंसकलिंगमां 'आं' प्रत्यय लागे छे. 'आ' प्रत्ययः विशारदा (४८), रूडला (५९७), भमरला (५४९), दीहा (१०७५), वणिकडा (१७८९) वानरा (२०६५). [पुलिंग 'ओ'प्रत्यय : नयणलां (५), पारेवां (२१७), फुलडा (९०७), वयणां (१५७७), क्रियाणडां (१७९१) (नपु०]. अविकारी अंगवाळा नामना बहुवचनमा कोइ प्रत्यय लागतो नथी. पण संदर्भ उपरथी के क्रियापद के विशेषणादिकना स्वरूप उपरथी बहुवचनत्वनुं सूचन थइ जाय छे. दोहिला वक्ता (१८), दुख सहया (१९२), मंदिर प्रजाल्यां (२८८), उंचा आंबा (३२४), फल वेडीयां (८८९). फल पाका (१६४२). लिंग : मध्यकालीन गुजरातीमां मळता त्रणे लिंगोनां उदाहरणो अत्रे मळे छे. पुलिंग : मयगल, जनम, ब्रह्मा, विधाता, गृहपति, वासूकि, रिपु, मधू. स्त्रीलिंगः वात, खेह, आस, गाथा, सभा, काया, हाणि, कुरंगि, भमुहि, कीरति, नववधू, नपुंसकलिंग : चीर, ढोर, अफीण, प्रश्रु, मटकु, इक्षु, भू Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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