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७. स्थूलभद्र चंद्रायणि '
'स्थूलभद्र - काशा प्रेमविलास फाग' रचनार कवि जयवंतसूरिनी स्थूलिभद्रना जीवन प्रसंगने निरूपती आ बीजी काव्य कृति छे. वस्तु, रचनाकौशल अने बानीमां जे पक्वता देखाय छे ते परथी लागे छे के कवि प्रस्तुत कृतिनी रचना उपर निर्देशल 'फाग' पछी करी हशे.
आ कृतिनो रचना संवत प्राप्त थतो नथी १४७ कडीनी आ कृति बे खंडमां वहें चायेली छे.
अमना जीवनना महत्त्वना प्रसंगाने निरूपतु आ नानकडु काव्य अनी राजस्थानी - हिन्दीमी छांट दर्शावती भाषा, अभिराम अलंकार मंडित शैली अने रचना कौशलने लीधे अनोखी भात पाडे छे.
काव्यना आरंभमां कवि 'शारदामइ' ने नमस्कार करी, स्थूलिभद्रना गुण गाइ जीवन सफल बनाववाना मनेारथ सेवे छे.
कवियन माइ शारदा, ताके लागुं पाय,
जीह सफल करु आपनी, थूलभद्र के गणाय. २ १
स्थूलभद्रना प्रथम दर्शने ज काशा तेना प्रेममां पडी जाय छे. ते प्रसंगने वर्णवता कवि छे छे के ओक दिवस स्थूलिभद्र शिकार खेलवा जाय छे. शिकारथी पाछां फरतां 'जंचीखाना' आगळ ते केाशानी नजरे पडे छे सेना हृदयमां प्रेम जागे छे अने अनी केवी दशा थाय छे तेनु कवि सफळ रीते आलेखन करे छे.
मयनह नवम दशा कोशि पाइ, पिउ पिउ जपतइ वरि
गमाइ,
शीतल च्यंदन बुंद तनि लाइ, बींज्यत बींज्यत चेतन आई उ ४
कोशाना रूपशशी देहनु वर्णन कवि विस्तारथी करे छे. प्रवाही छंद रचनामां कवि लयमाधुर्यनो आस्वाद करावतां उपमा उत्प्रेक्षादि अलंकार द्वारा केाशाना अतीव रमणीय अने बारमनोहर सौन्दर्यने अहीं शब्दस्थ करे छे. मुखकमलथी आरंभी कवि नेत्र, अधर, कंठ, हस्त, कटी, नाभी, जंघा इत्यादि अनेक अंगानी शोभा वर्णवे ( कडी २५ - ५१ ) छे अने काशानुं सुरेख चित्र उपसी आवे छे.
याकु रूप अनुरूप कीला, नवयोवन मनमथ - लीला,
तुम भी साहिब छयल छबीला, सकलकला गुण-जण रंगीला. २५ कुसुम सकर्बुर कबरी दंडा, गंगा यमुना संगा अखंडा, रतन खचित सिरि चाक जु साह, अनुपम गोफणडइ मन मोहइ २६ नाग सुरंगा मंग अभंगा, कणय रयण आभरण सुचंगा, निषेध कनक वसुगिरि किर संगा, निरखति उलट रंग तरंगा. २७
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गौर कपोल शशिबिंब समान, पावइ नारिंग के उपमाना,
उगा मुकुर तणी परिं दीपई, निरखति नयनां तरस न छीपईं ३१
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१ ला. द. हस्तप्रत ग्रंथभडार, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद, हस्तप्रत क्रमांक ३३५८. २ स्थूलिभद्र चंद्रायणि १. १, १
३ एजन, पृ. १, ४.
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