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________________ उन्नत पीन पयोधरा जोरा, उन्नत श्याम सुचूचक गोरा, त्रिण्य अंगुण थण अंतर सारा, करि कुंभ चलवा उपम बिच्चारा.. ४० पछी स्थूलिभद्र सखीने। संदेशा मळता, 'कोशा'ना भवनमां जाय छे. कोशा अनुं स्वागत करे छे. सुनउ हा साहिब मे घन गेहा, भी तुम्हारा हइ मुझ देहा, मनकी मुरादि होवइ से। कीजइ, अतना मांग्या मोहीकुं दीजइ.२ ६६ अने स्थूलिभद्र साथे कोशाना मिलनयोगनु कविले करेलु शृंगारयुक्त वर्णन...(कडी ७१-७९). भीडत च्याली कसण त्रटुकी, टुकुडे टुकुडे थणथी चूका, थणहर मदमत गजय कुंज सरिसा, अंकुश कर ज दोआ अति हरिसा. ७१ च्योरी च्यार करी कहां लीना, चिंत बिराणा हो छीनी लीना, इउ भूज-पासि बांधी कामराजइ, राख्या दाइ थग डुगरमा जइ3 ७२ पण परंपरायुक्त होवा छतां मधुर उपमानथी रुचिर बन्यु छे. आम अनेक प्रकारे लीला करता स्थूलिभद्रे बार वर्ष पूर्ण कर्या. अही प्रथम खंड पूरो थाय छे. बीजा खंडना प्रारंभमां 'काशा'नी विरहव्यथानु वर्णन करवामां आव्युछे. शकटाल मंत्री मृत्यु थतां राजा मंत्रीपद लेवा स्थूलिभद्रने आमंत्रण आप्यु. आ प्रसंगने कवि लाघवथी आलेखे छे. भारति भगती कर भली, द्यउ मुझ वचन की सिद्धि, कोशा विरह वखाण स्यु, बीजइ खंडि विशुद्धि, १ बालिद भरण भए तायिं राई, थूलिभद्र कोशा धरथी बुला ए, एलना बोले सुणी काश जाई, ज्यु ज्यल विछयुर्या माही परिहुइ ४ २ . उत्कट विरहव्यथा अनुभवती कोशानु वर्णन कवि आ प्रमाणे करे छे.. विरहानल ज्वरथी तनु ताती, सांइ प्रेमकथा हाड नाहती, ताथिइ विसम हुआ परिणाम, भींतरि तनकु ऊतावइ काम.५ २६ अने अंते काशानी केवी करुणाजनक स्थिति थाय छे. कोशा विलपतिई यु मूरछाइ, सखी कहइ बूब दिखउ सुताइ, ए जायु भेज्या सयनउं हाथी, तनकी व्याधि समइगी उसघी. २८ । वैशग्य पामीने स्थूलिभद्र संभतिविजय गुरु पासे दीक्षा ले छे. पछी गुरुना आदेश थतां ते प्रथम 'चार्तुमास' गाळवा कोशाना 'भवने' आवे छे. ए प्रसंगर्नु कवि स्वाभाविकताथी वर्णन करे छे. गुरु फरमान लहीउ सवेळां, आओ थूलभंद्र मुनिवर लीलां, कोशि वधाइ करइ रे नेहाला, सांइ संदेसा जिउथी वाहाला. ६० १ स्थूलिभद्र चंद्रायणि, पृ. १, २५, २६, २७, ३१, ४०. २ . एजन, पृ. २, ६६. ३ जन, २, ७१, ७२. ४ अजन, पृ. २.१,२ ५ अजम, पृ. २.२६ ६ भेजन, २.२८. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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