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________________ (२२) कयां सांइ अंग मिन्हई अंग बाहु, कितनी बिछर्या परिसिनाउ, तनकी खबरि सांइ देखी विसरी, तुटति च्याली कसण सब बपरी. ६१ थूलिभद्र मुनिवर रहे.च्यतु मासि, बूझवइ काशा कुरे उल्लासि, सूनि हो वचन रसाला, सब चंचल हइ दुनियां जंज्ला.' ६३ कोशाने उपदेश आपतां स्थूलिभद्र कहे छे, कोइ न किसका वहाला होवइ, सवारथ साहमा सब कोइ योवइ, भमरा कुसुम परि सब देखउ, जब बरस तब लगई फिर ताप खउ.२ ६५ आ उपदेशथी प्रतिबोध पामी कोशाए... मुनि के वचन सुनी होशियाइ, धरमह सेती राती हुइ, समकित शील लीइ मुनि पासइ, मुनि भी च्याले पहुतइ चतुमासइ.3 ६६ 'समकित शील' अंगीकार कयु. गुरु श्री विनयमंडन उवज्झाय, जिनु के नरवर सेवइ पाय, लघु सीस जयवंतसूरि गुण गाइ, थूलभद्र तेवतई सुख सवि थाइ.४ ६८ . आम समग्र काव्य एना शब्दलालित्य, वर्णविन्यास अने उचित अलंकार योजनाने लीधे नवी भात पाडे छे. राजस्थानी-हिन्दी भाषानी छांट ' धरावती आ कृति भाषाकीय दृष्टि पण उल्लेखनीय छे. ८. नेमिनाथ स्तवन: ४. कडीनी आ संक्षिप्त छतां रसिक कृति जयवंतसूरिनी एक प्रकाशित थयेली कृति छे.५ एना संपादक मुनिश्री धर्मविजयजी जणावे छे तेम "(आ) स्तवन एक खंडकाव्यनु भान करावे तेवु' प्राचीन गुर्जर काव्य छ, साथे साथे कर्तानी गूर्जर भाषामां दरेक रसो पोषवानी कुशउता. देखाडी आपे छे." कवि काव्यना आरंभमां 'सरसति' देवीने नमस्कार करी काव्यनु मंगलाचरण करे छे. पय प्रणमि सरसति तणी, नेमि गुण गाउं रसाल, संजोगी अनइ जोगिया, मन मोहन सुविशाल.७ १ 'सवि ऋतु भूप' अवी वसंतऋतुना प्रारंभ थतां एनी मादक असर 'युवति जन' अने 'प्रकृति' पर पडे छे. एनु वर्णन कवि उचित शब्द अने प्रासनी पसंदगी करी कुशळताथी आपे छे. पसरिउ मलय महाबल, महाबलि करतु व्याप युवतिजन रत जलहर, लहरि हरइ जन ताप.८. ४ १ स्थूलिभद्र चंद्रायणि, पृ. ३.६०, ६१, ६३. २ अजन, पृ ३. ६५. . ३ अजन, पृ. ३, ६६. ४ ओजन, पृ. ३, ६८.. ५ शमामृतम्-नेमिनाथ स्तवन, संशोधक, मुनि धर्मविजय, भावनगर, १९२३ पृ. ११-१४. ६ अजन, पृ. ११ ७ अजन, पृ. ११, १. ८ अजन, पृ. ११, ४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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