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________________ (२३) वसंतऋतुना प्रादुर्भाव विरही जनने माटे तो.. - विरहि-जन-मन-दारण, दारूण करवत घार. १ बनी रहे छे. आम सर्वत्र व्यापी गयेल वसंतनी मादक असरथी 'नेमिनाथ' पण अलिप्त रहेता नथी. ते पण वन मध्ये विविध प्रकारना खेल खेले छे. एनु मनोहर वर्णनचित्र कवि कलमे योग्य लाघवथी सज्यु छे. वृंदावनमां वन वन तरू तलइ, सरोवर जल सुविचार रे, राधा रुकमिणि भामा भामिनी, क्रीडई नेमिकुमार रे.२ ११ शब्दानुप्रास अने आन्तर्यमकथी आ चित्र सुंदर बन्यु छे. वसंत विहारनु कविनु आलेखन संस्कृत ऋतुकाव्यनी याद आपे अवु छे. केकर कमलिं छांटि जल भरी, केवर केसर रोल रे, के नेमि छेहडइ बलगइ आवती, केतो करइ टकाल रे. १३ नयन मींचांवइ का अक पूठिथी, काइ छुपावइ बाल रे, काइ करी माला नव नव कुसुमनी, कंठि ठवइ सुविमाल रे.३ १४ नेमिनाथना राजीमती साथे विवाह थया. परणवा माटे नेमिनाथ ससरा उग्रसेनना द्वारे जाय छे त्यारे ते त्यां राजमतीने जुओ छे. अनी देहयष्टिन सुंदर अलंकार वडे मनोहारी चित्र कवि कलमे सज्यु छे, जेथी राजमतीनी मधुर-मृदल मूर्ति प्रत्यक्ष थाय छे. वेणी काजल भूअंयम काली, आंखडली अतिहिं अणीयाली, झाली झबकइ झबकाली, ससिहर वयणी वर मटकाली. अधर जस्या रातडी रे प्रवाली, कुंद-कली दंताली. १७ कंठि कायण महेली टाली, उरि सोहई मोतीसरि जाली, करि चूडी खलकि रणकाली, बाहडली अवली लटकाली.४...१८ पशुना आर्तनाद सांभळी नेमिनाथ दु:खी थइ पोताना घेर पाछा फरे छे अने चरित्र ग्रहण करता, चोपन दिवस बाद केवलज्ञान प्राप्त करे छे. आ बाजु नेमिनाथ वगर अकली पडेली राजमती विलाप करे छे. प्रीत कर्या पछी छेह देनार प्रत्येनी अनी उक्तिओ अनी चोटने लीधे नेांधपात्र छे. सज्जननीया तई ते करिउं, जे वयरि न करंति, प्रीति ढंढेरा जगि दिआ, भीतरि जीव बलंति नेहा कीजइ तेतली, जेत्ता निरवहवाइ, ना ऊपर संतापिइ मेहली आदररियाइ५ २५ १ शमामृतम्-नेमिनाथ स्तवन, संशोधक, मुनि धर्मविजयजी, भावनगर, १९२३, पृ. ११,७. २ अजन, पृ. ११, ११. ३ नेमिजन स्तवन पृ. १, १३, १४ ४ एजन पृ. १७, १८ . ५ एजन पृ. १३, २५ For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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