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विलाप करती राजमतीनी हृदयोर्मिने कविओ वेधकताथी निरूपी छे. आंखरे राजमती मिनार पर नेमिनाथ पासे जाय छे. त्यां नेमनाथना उपदेशथी प्रतिबोध पामी राजमती पण संसारनो त्याग करी 'चारित्र' ग्रहण करी, अंते मुगति पामी. अ प्रसंगने अल्प शब्द द्वारा संक्षिप्तताथी कवि भालेखे छे. जे कवितुं रचनाकौशल दाखवे छे.
देह नथी संसारमा, नेह न सही रे विछाह, छेह देइ जोइ नेह करी, ते साथि सुं माहो रे. ३५
राग वइरागी वयणलां, राजलि सुणिय रसाल
चारित्र लेइ जिन कहुइ पाणी पामी मुगति विशाला रे.३९ काव्यना अंतमां नेमिनाथ पण 'बुझवी भवियण लाय' 'शिवपुरी: जाय छे
९. प्रकीर्ण रचनाओ
आ उपरांत जयवंतसूरि केटलांक गीतानी रचना करी छे. ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरना ग्रंथभंडारमाथी अक 'गीत संग्रह' मळी आव्यो छे. जे 'नेमिनाथ आदि गीतसंग्रह'२'मे नामे नेांधायेल छे अमां अन्य गीत साथे जयवंतसूरि कृत त्रण गीत संग्रायेला मळी आव्या छे.
(१) करणेंद्रिय परवशे हरिणगीत (२) नेत्र परवशे पतंग गीत
(३) स्थूलिभद्र गीत. प्रथम गीतमां कवि विरहनु वर्णन 'हरिण'ना दृष्टांत द्वारा निरूप्यु छे. विरहना स्वरूपने वर्णवता कवि कहे छे
दाहिलुरे विरह वाहाला तणउ, वरि मरण दहइ अकवार, नितु बलण नीसासे करी, कुण जाणेइ रे विरहीयां सार.3 कवि हरणना साचो स्नेह आ प्रमाणे वर्णवे छे.
नेहि रे बाधां हरिणलां, अवगणी जीवित देहि,
दे प्राण आवी दूरिथी, साचउ साचउ रे हरिण स्नेह.४ ३ अने गीतना उपशममां कवि कहे छे
मोकलू इंद्रिय काननू, मृग लहइ दुख अपार, जइवंत पंडित बुझवइ, टालु टालु रे विषय विकार.५
७
१ नेमिजिन स्तवन, पृ. १४, ३९
नेमिनाथ आदि गीत संग्रह, पुण्यविजयजी हस्तप्रत ग्रंथभंडार, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद, हस्तप्रत क्रमांक ३५५८.
नेमिनाथ आदि गीत संग्रह, पृ. २. २ १ एजन पृ. २, ३
५ एजन, ग्र. २, ७
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