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________________ जयवंतसूरिकृत . ढाल ३ राग : देशाख (थूलिभद्रना अकवीसानो देशी ) तेणिं नयरिं राजा अरिमर्दन भलु, सत्य नामई रे परिणामि वली सांभलु, जेणिं भंजिउ रे वइरी जननु आमलु, जस व्यापिउ रे त्रिभूवनमां यश निरमलु, तूटक त्रिभुवन्न मांहि पुहुवि नाहिं, सर्व पाहि निर्मलु, यश आप थापिउ भुवनि व्यापिउ, चंद्र शापिउ कशमलु, वइरीअ जीता जग-वदीता, केवि भीता अणुसरइ, दारिद्र कापइ कीर्ति थापइ, वैरि कांपइ थरहरइ. ६० तेणि नयरिं रे गुण रयणायर धाम रे, रयणायर रे व्यवरारी अभिराम रे, पुरुषोत्तम रे वसवा केरुउ ठाम रे, जस अंगिं रे नहीं जड भावनूं नाम रे. तूटक जङभाव करीनइ न वेरी, नहीं अनेरी कालिमा, मुहि मधुर भीठउ सुजनि दीठ उ, गुणहिं जेठउ चंगिमा, मर्याद राखई नेह दाखइ, सरस भाषइ वयणलां, अन्याय-भंजन न्याय-रंजन, कमल-खंजन नयणलां. ६१ तस नारी रे श्री नामि रंभा जिसी, गुण-पुरण रे रूपई जाणे उर्वशी, नयन भ्रमि रे बापलडी मृगली हसी, तस चितिं रे धर्म तणी वासन वसी. तूटक तस वसी वासन पाप पासन, जैन-शाशन बोह ए, सा शरद-रयणी चंद-वयणी, कमल-नयणी सोहे ए, मुखि मधुर-वाणी साकर-वाणी, सर्व प्राणी मोह ए, श्री नामि सरखी सुजनि निरखी, सदा हरखी सह ए. ६२ सा नारी रे नागरवेली जेहवी, त्रिमवन मांहि रे गुणे करी विख्यात हवी, मुख-मंडन रे रंग देखाडई अभिनवी, फल पाखइ रे झूरइ अनुदिन एहवी. अनुदिन्न झुरइ पाप चुरइ, पुण्यः पुरइ पदमिनी, जिम सदल कोमल विमल परिमल, बहुल फल विण पदमिनी, चिति घरइ आरति बुद्धि भारति, रूपि सा रति कामिनी, . बिहु-पक्षि पूरी नहीं अधूरी, पुण्य-सूरी . भामिनी. ६३ रत्नाकर रे व्यवहारी पाप परिहरइ, एकचिंति रे श्री जिन-आज्ञा अनुसरइ, एक दिवसिं रे व्यवहारी चिंता करइ, पुत्र पाखइ रे मन मांहि अति दुःख घरइ. Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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