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शृंगारमंजरी . .
तूटक दुख धरइ सुंदर सकल मंदिर, चिति-कंदर समलहइ, अति गिरूइ वेदन देह-भेदन, वरसि सम दिन निरवहइ, तस नहीअ थोडी कनक कोडी, चित्त कुडी समलहि, जे पाप लीधां दुःख दीधां, कर्भ कीधां सोइ सहइ. ६४
दूहा हंस विना मानस जिसिउं, वास विना जेम गांम, थांभा विण मंदिर जिसिउं, उत्तम विण जेम ठांम. ६५ चंद्र विना रयणी जिसी, भाण विना जिम दीह, नीर विना सरोवर जिसिउं, जिम वन पाखई सीह. ६६ उत्तम सुत विण कुल तिसिउ, शोभइ नहींअ निदानी, सुत विण मुगति न पाभीइ, इम कहइ वेद-पुराणि. ६७
ढाल ४ राग सोमेरी तथा राग गोडी
(दशरथ नरवर राजीउ, ए देशी) नीअ-मनि एहवू चीतवइ, रयणायर धन-नाह रे, वली वनिताई वीनविउ, मनि हूउ अधिक उमाह रे.
तूटक निअ-मन्नि चिंतइ पुण्य पोतइ, तेणि जोतइ मति लही, तिहांअजित जिनवर मूर्ति सुखकर, नमिअ सुर-नर वनि रही, तस महिमा गाजई तूर वाजइ, कष्ट भाजइ सवि सही, वांछिय पुरित अजित मूरति, पाप चूरति भय दही. ६८ शासन · रखवाली सूरी, अजितबाला तस नामजी, सेवा सारइ जिन तणी, पुरइ वंछित कामजी
तूटक
शाशन केरी अति भलेरी, महिम देहरी अभिनवी, एक चित्ति थइनई तिहां जइंनई, भोग देईनई वीनवी, तस भाग्य जागइ पाय लागइ, पुत्र मागइ मानवी. सा कुसमि वूठी नहींअ जूठी, सेठि तूठी दानवी. ६९ तस अनुभावई - सेठिनिं, पुत्र हर्बु गुणवंतजी, सुर-तरु सुर-भुवनि जिसिउ, जयवंत विद्यावंतजी.
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