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________________ १५६ जयवतरिकृत ढाल ४६ राग मेध मल्हार आवोउ आसाढ कि वादल वापरिया रे वापरिया रे, वरसइ मेह अखंडकि सरोवर जलि भरिया रे भरियां रे, पीउ पीउ करइ बपीह कि बादलं छाहियां रे छाहियां रे, असल सलावइ साल कि वाहलां विरहीयां रे विरहीयां रे. २१०९ मांडिउ तंडव-नाच को गाइ मोरडे रे मोरडे रे, क्षणि क्षणि आवइ सज्जन, हैडइ मोरडइ रे मोरडइ रे, आंसूडइ भोंना चीर कि गोरी उरडइ रे उरडइ रे, क्षणि क्षणि मुंइ क्षणि खाट कि अंगणिउ रडइ रे रडइ रे. २११० जस धरि वाहला होइ कि लहिकइ बांहडी रे बांहडी रे, पाहलां विरहिय माणस किम गइ रातडी रे रातडो रे, एक दुख पाहलां बिरह कि संभारइ बप्पीहारे रे बप्पोहा रे, राति अंधारी घोर कि, झिरिमरि मेहला रे मेहला रे. २१११ उडणहारा हंस कि सरोवर छांडीयां रे छांडीयां रे. विरह-विगोयां निज घरि माणस आविया रे आविया रे, गाजइ गुहिर गंभीर कि, रयणी सामली रे सामली रे, झरमारि वरसइ मेह कि, झबकइ वीजली रे वोजली रे. २११२ सूकइ देह ज वास कि नयने, मेह गलइ रे लइ रे, घाधइ बिरह-अंकुर कि नीसासा धूमलइ रे धूमलइ रे, झबकइ वीज-सनेह की चिंता पुर रे पुर रे, आविउं वर्षाकाल कि, विरही हइडलइ रे हइडलइ रे. २११३ जे जे पडइ सुधार कि लइ मेह-जल केरडी रे केरली रे, ते ते विरही चित्ति के करवत जेवडी रे जेवडी रे, जिम जिम झबकइ वीज आकाशि धूहलइ रे धूहलइ रे, तिम तिम विरही-माणस भींतरि परजलइ रे परजलइ रे. २११४ दाडुर मोर बप्पीह कि, जिम जिम सांभरइ रे सांभरइ रे. तिम तिम वागइ तीर कि जस पीउ सांभरइ रे सांभरइ रे, सजल आसाढी मेह, वाहालां विण नवि गमइ रे गमइ रे, विरहानलि दाधी देह कि जल बिंदु छमछमइ रे छमछमइ रे. २११५ जाणी मेह आवत कि, तोरण बांधीयां रे बांधीयां रे, सारस हंस बलाहक निज घरि चालीयां रे चालीयां रे, पहिली लाव्या मेह दादुर वधाइयां रे वधाइयां रे. चातक करइ कइवार कलावी नाचीयां रे नाचीयां रे. २११६ Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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