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शृंगार मंजरो
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जे नितु नयणे खेलतां, ते सज्जन देखइ नहीं. १३७ लख जोयणां स हुति . अंधप्पणं लहति. १३८ काढइ अवसर बँक, तही मिलतां निःशंक लाधु मननु पार, पणि छेहडइ हुआ छाहर. १४० को अवसरिं लवाइ, ते उत्तम कहेवाइ १४१ जउ त्रूटउ धण-पेम, नींच तणी गति एम. ९४२ मन मिलसि रसेण, जउ वासीउं विसेण. जांणी मननु पार, धरी रहीइ मन बारि. १४४ दिन दिन तिजइ प्रीति, तेहवी न कीजइ रीति. १४५ तु टलसइ सवि कलेश. रथमां किद्ध प्रवेश. १४६ शुकुन हवां शुभ सार, शुभनु कहूं विचार. १४७ वेश्या गज वृष गाइ, कुमरी - फुल फल जाइ. छत्र चमर मकरंद, मुनिवर महिमावंत. १४९ गौमय दीवउ वीणि. पंडित शुक विप्र वीण. महलेवां
लोकह लाख विचालि, आगलि ऊभां आज, सही ससनेहां मांणसां, तेहजि नेह वित्रोडीयां, नेह विहूणां मांणसा, तेहजि जिहांरइ मन हतूं, भलं हर्तुं इणि अवसरिं, जाणि सुजन कपूर छइ, सज्जन दुर्जन आंत, अपराधई नवि ऊभजइ, करम संयोग वहि वसइ, तु मनमां नवि झरीइ, सज्जन लूणां वहिडीओ, अथ मी स्युं करइ, उच्छां मांणस छंडइ, बोली नवि वणसाडीइ, सरोवर - पालि तणी परई, जिम सायरनी लहिरडी, जउ छइ शील जि निरमलुं, अह निय-मनि चतवइ, वाट जातां अति घणां, अशुभ अमंगल पfरहरी, राजा दधि वरवर्णनी, हय दूर्वा चंदन वली, मध मांस मधु रूप मणि, अक्षत सोविन देव धृत, माटी वस्त्राभरण जख, वद्धापन नीररूह, एता देखी चतुर नहि, जिमणांइ, मनवंछित फल पामीइ, धन संपदा अाइ. १५१ रत कुंभ दोए जल भर्या, धेनु सवछी होइ, भाट करइ कइवार जउ, मनवंछित फल होइ. १५२ जिमणांथां डाबां वलइ, ते सावडू सजोइ, जिमणां जाइ वामथी, ते उडु सहोइ. १५३ श्वान शिखी सींचाणडु, वायस नई कलीयार, ए सवि रूडा सार्वडू, पंथइ सुख दातार. १४५
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