SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शृंगारमंजरी १४७ सुखमा निगुनां च माइ, पांड कान् पावि, ते सम्जन मुख देखीबा, नितु दिगयर डगंति. १९९५ कसतां कांसा कस नहों, दीसइ सोविन वन्ना, लागु हैया भरुसडु, जव गुण लहिया सुजन्न. १९९६ तिकां सरजिउ देब रे. उछां साथि सनेह. धडीय न लागइ छांडतां, जिम कातीना मेह. १९९७ सुगुणां साजन थोडिल, जेहमिउं कीजइ नेह, निगुणां घरणी-तलि घणां, पगि पगि आपइ छेह. १९९८ भमरु बइठ उ भोलपणि, सींबलि देखि सुरंग, जव जाणियो गुण सेवतां, तव हुउ मन-भंग. १९९९ मोती तणइ वरांसडइ, कांकरा चिणइ हंस, सज्जन तणइ भोला बडइ, कीध कुमाणस संग. २००० जउ दीठ मन तोहरु, तु मि कीउ सनेह, पहिली माया दाखवी, हबई कां आपिउं छेह. २००१ नेहा कीजइ तेतला, जेता निरवहिवाइ, नाउ पर संतापीइ, मेहली आदरीआंइ. २००२ वाहाली मुजसिउं बोलती, जोती नेह नयणेहिं, मुज कारणि सहूं वंचती, ते किहां गयु सनेह. २००३ भमरइ जाणिउं फुल ओ हसइ सदाइ सुरंग, मन आशा मनमा रही, क्षणमां थयु विरंग. २००४ । सजनीआ थई ते करिलं, जे वइरी न करत, प्रीति-ढंढेरा जगिदीआ, भोंतरि जीव बलंति. २००५ धरि आडंबर कां करइ, जउ नही निरवहि नार, बइरी न करइ ते करिउ, हैडइ करवत-धार. २००६ सेोगत मन साचनुं करिउ, सज्जनि त्यजता नेह, करतां मन हूंतू जूउं, जूउं देता' छेह. २००७ ताहारइ मनिसिउ ऊपनु, सिउं वसीउ मनि दोस, ते मन तेह सनेहडा, छांडो आणिउ रोस. २००८ इछो नयण-मेलाबडउ, मेहलंतां जीवि मेहनाइ, जिहसिउं रंग रम्या सइ, ते कहु किम मेहलइ. २००९ माणसडां नवि धीरीइ, बाहिरि देखि सुरत्त, वरि अंक बरस विलंबीइ, जोइ दीजइ वित्त. २०१० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy