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________________ १४६ जयवंतसूरिकृत ढाल ३७ राग धन्यासी (भले रे पधार्या तुहमे साधुजी, ओ देखी) इणइ रे अवसरि राखी सुंदरी, पडतो पडती जलनिघि मांहि रे, सहु रे सुकंठादिक इम वीनवइ रे, तू अह्म स्वामी तणइ ठाइ रे ९९८३ लक्षण रे धिगू धिग असतो केरडां रे, तिजीउ तिजीउ राजन कंत रे, सारथ रे नायक सायरि नांखीउ रे, अहवी अहवी स्त्रीना वृत्तत रे... दुपद. वनिता साथइ कोइ म राच अहनु रंग-पतंग रे, कामिनि चूकी जे अक कंतथी रे, तः इ हुइ बीजइ किम रंग रे. १९८४ मदमंत रे कामालीसा कामिनी रे, वि इ विलसइ सुंकंठ साथि रे, मनमां रे चिंतइ सोई सुकंठजी रे, अहनु अहनु न कीजइ वोंसास रे. १९८५ छंडिउ रे लीला लहिर भूपालजी रे, छांडिउ सारथवाह रे, बनिता रे ते सिउँ होसइ मुंहनइ रे, देसइ देसइ अवसरि दाह रे. १९८६ मनसिउं रे विरमिउ गुणवंत तेहथी रे, विलसइ विलसइ मन विण भोग रे, जिम का कारागृहमा राखीउ रे, जांणइ जाणइ तेहवु संयोग रे. १९८७ अहवइ रे सारथपति सायरि पडिउ रे, कांइ कांइ करम-संयोगि रे, पामिउ रे किहि अंक प्रवहण-पाटीउ रे, जिम विरहो प्रिय-संयोग रे. १९८८ कांइ रे यभ संयोगि पाटीउ , लागुं लांगुं सिंहलद्वीपि रे, सारथ रे नायक तव ससतु रे fइ चिंतइ हैडा मझारि रे १९८९ आभा केरी छांहडी, वीजलडी, तेज, क्षणमा हुइ विश्राल जिम, तिम कामिनि केर हेज १९९० जाणिउं तू गुणवंति छि, तु मई मांडी प्रोति, क्षण अक रंगपतंग नउ, अहवु नाविउं चींति १९९१ तूं अविहड जाणी हती, वाहालो वहिडी कांइ, जस खालइ शिर कांकीउ, ते का छेदी जांइ. १९९२ जु तुमे कीया सनेह, तु कां बिछोहा दाखव्या, नाउ वाहलो मूं काइ, करवतडी आपइ गलइ. १९९३ अंब न हुइ आंकडु, राईणि नुहइ निंब, उत्तम तु वहिडू नहीं, नीरि न बुडइ तुंब १९९४ Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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