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शृंगारमंजरी
दुख-सायर वाघई लहिर रे, मन माहइ गाजइ गुहिर रे, वली डील वलूरइ नहरि रे, आछेटइ सघलूसयर रे. १९७१ मोरइ तनिथी उडी गयु रुहिर रे, नोंसासे उन्हा अहर रे, युग सरखा थाइ मुज पहुर रे, क्षण माहइ आवइ तुर रे. १९७२ काइ टालु ओ मुज विहुर रे, तस दिउगी सोविन-महुर रे, नवि भावइ अन्न सुमुहुर रे, विरहानल दाजइ ऊर रे. १९७३ जिम समरइ समरस शूर रे, जिम चकवी समरइ सुर रे, जिम क्षुधातुर वंछइ कुर रे, जिम भोगी केसर कपुर रे. १९७४ तिम समरं तुज गुण-पूर रे, वा० अबला सिउं सिउं जोर रे, इम कांइ जइ रहिउ दूरि रे, तू तु मनह-मनोरथ पूरि रे. १९७५ हूं मयणइ कोधो चूर रे, वा० वाघइ विरह-अंकूर रे, तू तूं इम कां करइ असुर रे, तुज विण गो मुज नूर रे. १९७६ हूं मातीनु तु दोर रे, गलइ साही राखिउ जिम चोर रे, किम जाइसि मुंहनि छोरि रे, वा० आशा-पाश म तारि रे. १९७७
ढाल ३६
राग मूपाली (पीउ आपो रे महारो पुत्ररतन्न, ओ देशी ) कतह मारु सायरि पडीउ, इम कां दैव ज नडीउ रे, हैडा साथई हूंतु जडीउ, क्षणमां किम ऊजडीउ रे. १९७८ कांमणडू काइ कंतइ की चिंतडलू चोरी लीधु रे, आशा-वेलइ करवत दीधू, अकइ काज न सीधु रे....दुपद० हैडा मांहि आस घणेरी, वालिंभ हूती तेरी रे, दैव तणी गति कां केरी, ते सवि नांखी फेरी रे. १९७९ कंतह मारू दोस ज काढउ, इम कां थइ रहिउ गाढउ रे, तूं वैश्वानर दीसइ टाढउ, वहालां सिउं सिउं ताडु रे. १९८० सुणो कोलाहल अति दुखकारी, धाइ आव्या पाहरी रे, नीजामा जोइ नीर मजारी, सुंदरि रठती वारी रे. १९८१ जोतां जोता शृद्धि पामी, कुणहि न दीठउ स्वामी रे, असती मरण पामेवा थाइ, सहूई राखी साही रे. १९८२
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