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________________ शृंगारमंजरी अगनि थकी अधिकु दहइ, वल्लह-विरह विलास, आंसू-जलि नितु सोंचतां, वाधइ अधिक हयास. १०५९ गुण संभारी गहिबरी, हैडा झरि म झूरि, जस मिलवा अलजु धरइ, ते सज्जन छइ दूरि. १८६० चकवी मिलवा टलवलइ, चकवु पेलइ तीरि, घण अंधारु रयणि भर, आलिं उंडूं नीर. १०६१ कां तूं झूरइ रे हीया, सज्जन तणइ वियोगि, जहीं होसइ दिन पाघरा, तहीं मिलसइ संयोग. १०६२ सजन विरह विगोइयां, आसार खुइ जीव, कालइ उंबर पाकीइ, मिलइ जीवंतां जीव. १०६३ हैडा कुशल ज मग्गीइ, वल्लह अनि अप्पाण, कही मिलइगां सज्जनां, आशा मेरु समान. १०६४ सज्जन विरहानल बलइ, ते मु दुख न होइ, हींइ वसइ छइ सज्जनां, रखे बलतां सोइ. १०६५ हैडा फटि पसाउ करि, नीठर जीवइ काइ, सज्जन गुण संभारता, फटवि दुहु दिसि जोइ. १०६६ सज्जन पुव्ब-भवंतरिइं, दो जण वइर किसियांइ, नेह लगाडी मरण दिइ, मरण मज्झे वसीआइ. १०६७ हैंडूं पंखीनी पर, मेहलियां सवि कसीयांइ, कोइ न दीसइ तेहवु, जिणि तुह्मो वीसरियांइ. १०६८ विहि वरां सा बिहु परिं, नेह जि सरखिउ काइ, अहेव सनेहां माणसां, पंख न अप्पी कांइ. १०६९ जह पिउ मिलणि उमाहीलं, पूरइं पसरइ चित्त, तिम जउ पसरइ पांखडी, तु उडी मिलुं नित्त. १०७० जाणउं जै उडी मिलं, पंख न दीधी दैवि, मनमा रहइ मन-वत्तडी, अति अबटाइ जीव. १०७१ सारसडां मोती चिणइ, मन भावइ सो लइ, एक बार साजन मिलउं, पंख विकाती देइ. १०७२ विहि रूठी तु सिउं करइ, पांखडीखांइ पराण, चकवां रयणि विछोहीयां, कांठा सायर समान. १०७३ चकवां रयणि विछोहीयां, पंख पसाइ मिलंति, पंख-विहुणां माणसां, नाउं दिन नवि रत्ति. १०७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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