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जयवंत सूरिकृत
प्रीति न कीजइ जां लगइ तां मनि हुइ समाद्धि, जबथी मांडी प्रीतडी, तवथी आणी व्याधि. १०४३ नेता सुखनिं कारणं, मांडी प्रीति रसाल, तेता मुज फरि हूयां दुख, दहइ विरहानलनी झाल. १०४४ नयां डूंगर - ज्ञरण जिम, नितु नितु नीर झरेइ, हैहूं रत्न तलाव जिम, पूरिं फाटी जाइ. १०४५ हैडूं दुखिं पूरीउं, निम दाडिम - कुली एण सज्जन को नहीं तेहवु, ए दुख भंजइ जेण. १०४६ हैंडां भीतरि दव जलइ, सज्जन-गुण अंगार,
वि दीस जेणि उल्हवूं, अवगुण-नीर लगार. १०४७ हैडा पातिग एवडुं, ति न लहू सिउं कीद्ध, नयां नइ रस अप्पीउ, तुज झूरेवूं दिद्ध. १०४८ पी-विरहनल लग्गीउ, हैडा - भुवण मज्झारि, हल्लु-फूल्लवि नीसासडा, नीसरइ वयण- दुयारि. १०४९ विरह विछोहियां नेह तजउ, नयणां दो धडनाल,
अडुं रान तलाव जिम, फाटत तु ततकाल. १०५०
शरीर. १०५१
तीरि,
रहिउं शरीर १०५२
कुसुम कुतुहल केलिहर, चंदु चंदन चीर, सजन माणस विरहीयां, एतां दहइ ऊमाहियां ते उचल्यां, पुहुतां पेलइ मन मोरू साथई गयुं, जंखर वीसारियां न वीसरइ, गुणि गिरूआं रसाल, जिम परि भागु कांटडु, खिणि खिणि सालइ साल, १०५३ खटकइ कवीयण - वयण जिम, सजन प्रेम अपार, विरह खटकुइ तिणि परिं, जेहवा बोल गमार. १०५४
गुणवंता मन भावतां, सज्जन मिलइ केवार, देखी न सकइ दैव तु करइ विछोह अपार. १०५५
आज ज भागी नींद्रडी, आज ज गया विदेसि, आज ज सूनुं मन थयुं, सेरी
मंदिर देस. १०५६
दिन्न - दीह,
प्रीउ परदेसई चालतां, जेता खिणि खिणि ते दिन समरतां, मंदिर भरीउं लीहि. १०५७ अंगि वयणे लोयणे, सिय नीसासु मेह,
. विरह विछोहियां अध-घडी, वरस समाणो एह. १०५८
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